गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

वो कौम न मिटने पायेगी


वो कौम न मिटने पायेगी
ठोकर लगने पर हर बार , उठती जाएगी |

युग युग से लगे है यहाँ पर देवों के दरबार
इस आँगन में राम थे खेले , खेले कृष्ण कुमार , झूम उठे अवतार ||
...
गंगा को धरती पर लाने भागीरथ थे आये
ध्रुव की निष्ठा देख के भगवन पैदल दौड़े आये , साधक आते जायें ||

विपदा में जो देवों की थी अभयदायिनी त्राता ही
चंडी जिनकी कुलदेवी हो बल तो उसमे आता ही , जय दुर्गा माता की ||

बैरी से बदला लेने जो हंस हंस शीश चढाते
शीश कटे धड से अलबेले बढ़-बढ़ दांव लगाते , मरकर जीते जाते |

जिनके कुल की कुल ललनाएं कुल का मान बढाती
अपने कुल की लाज बचाने लपटों में जल जाती , यश अपयश समझाती ||

मरण को मंगलमय अवसर गिन विधि को हाथ दिखाने
कर केसरिया पिए कसूँबा जाते धूम मचाने , मौत को पाठ पढ़ाने ||

कितने मंदिर कितने तीरथ देते यही गवाही
गठजोड़ों को काट चले थे बजती रही शहनाई , सतियाँ स्वर्ग सिधाई ||

कष्टों में जिस कौम के बन्दे जंगल -जंगल छानेंगे
भोग एश्वर्य आदि की मनुहारें ना मानेंगे , घर-घर दीप जलाएंगे ||

शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011

दोस्तों, कृपया 1 मिनट का समय देकर इसे पढ़ें

दोस्तों, कृपया 1 मिनट का समय देकर इसे पढ़ें. अगर आपको लगता है कि बात में सच्चाई है तो यह सन्देश दूसरों को भी फॉरवर्ड करें .

अन्ना, स्वामी रामदेव या अन्य जो भ्रष्टाचार के विरूद्ध लड रहे है उनसे कांग्रेस क्यों परेशान है, जानिए कारण:

1- सरकार हर साल लोगों से 134 प्रकार के टैक्स से कितना पैसा जमा कराती है और ये पैसे कहा खर्च हो जाते है?
...
2-मंदिरों का पैसा सरकार किस मद में खर्च कराती है जिसे सिर्फ हिन्दू दान देकर इकठ्ठा करता है, ये बहुत बड़ा प्रश्न है.

3- काले धन का इतिहास क्या है, पहले कपिल सिब्बल ने कहा कोई भी नुकसान २ जी घोटाले में नहीं हुआ है, फिर अहलुवालिया ने कहा की हा वास्तव में कोई घोटाला नहीं हुआ है, फिर मनमोहन ने कहा इसकी जाँच चल रही है, विपक्ष को टालते रहे, राजा जैसा आदमी जिसके पास अपनी मोबाइल को टाप अप करने का पैसा नहीं हो, यदि वह अपनी पत्नी के नाम 3000 करोड़ रुपया मारीशाश में जमा कर दे, क्या यह सब बिना सोनिया की जानकारी के कर सकता है, उस पार्टी में जहा पर बिना सोनिया के पूछे कोई वक्तव्य तथाकथित प्रवक्ता नहीं दे सकते है,

4- फिर आया महा घोटाला देवास-इसरो डील का जिसमे की 205000 करोड़ की बैंड विड्थ को मात्र 1200 करोड़ के 10 साल के उधार के पैसे में दे दिया गया, भला हो सुब्रमनियम स्वामी जी का जिन्हें इन चोरो को नंगा कर दिया, हमारी कांग्रेसी और विदेशी मिडिया सुब्रमनियम स्वामी की तस्वीर हमेशा से गलत पेश किया है जब की वास्तव में भारत देश को ऐसे ही इमानदार नेताओ की जरुरत है जिसने कभी भी चोरी के बारे में सोचा ही नहीं,

5- फिर आया कामनवेल्थ खेल का 90000 करोड़ का घोटाला, फिर कोयला का घोटाला जिसमे ठेकेदारों द्वारा 10 पैसे प्रति किलो के भाव से कोयला खरीदा जाता है और उसे बाजार में 4 रुपये किलो तक बेचा जाता है, यह रकम अब तक 26 लाख करोड़ होती है,

6- इटली के 8 बैंक और स्वीटजरलैंड के 4 बैंको को 2005 में भारत में क्यों खोला गया है और इसमे किसका पैसा जमा होता है, ये बैंक किसको लोन देते है और इनका ब्याज क्या है, इनकी जरुरत क्यों आ पड़ी भारत में जब की भारत के ही बैंकरों की बैंक खोलने की अर्जियाँ सरकार के पास धूल खा रही है, इन बैंको को चोरी छुपे क्यों खोला गया है, इन बैंको आवश्यकता क्यों है जब भारत में 80% लोग 20 रूपया प्रतिदिन से भी कम कमाते है.

7-भारत के किसानो से कमीशन लेने वाले चोर कत्रोची के बेटे को अंदमान दीप समूह में तेल की खुदाई का ठेका क्यों दिया गया 2005 में, किसने दिया ठेका, किसके कहने पर दिया ठेका, क्या वहा पर पहले से ही तेल के कुऊ का पता लगाकर वह स्थान इसे दे दिया गया जैसे की बहुत बार खबरों में अन्य संदर्भो में आती है, यह खबर क्यों छुपाई गयी अब तक, इसे देश को क्यों नहीं बताया गया, मिडिया क्यों इसे छुपा गई, और विपक्ष ने इसे मुद्दा क्यों नहीं बनाया.

8- सरकार ने पहले कहा की बाबा बकवास कर रहे है, काला धन नाम की कोई चीज नहीं है, फिर खबर आयी की काला धन है और सबसे ज्यादा भारतीयों का है, यह स्विस बैंको के आलावा 70 और दुसरे देसों में जमा है,

9- सरकार ने कहा की टैक्स चोरी का मामला है, हम उन देशो से समझौते कर रहे है, जिससे की दोहरा कर न देना पड़े, यह टैक्स चोरी नहीं भारत देशको लूट डालने का मामला है

10- फिर बात आई की यदि ये भ्रष्टाचारी और लुटेरे इसमे से 15% टैक्स सरकार को दे तो इसे भारत के बैंको में जमा करने दिया जायेगा और किसी को यह हक़ नहीं होगा की वह पूछे की या इतना पैसा कैसे कमाया या लूटा. सरकार इस पर एक कानून क्यो नही ला रही है, किसको बचाया जा रहा है?

11- यूरिया घोटाला है और यूरिया किसान को दुगुने दाम बेचा जाता है, फिर गेहू सस्ते में खरीदा जाता है, हम अभी तक सुरक्षित अन्न भण्डारण की व्यवस्था क्यों नहीं बना पाए जब की हमारे पास धन की कमी ही नहीं है, क्योकि अन्न को सडा दिखाकर उसे कौड़ियो के भाव शराब माफिया को बचा जाता है जब की गरीब अन्न बिना मर रहा है।

12-हमारे देश में क्यों अनुसन्धान के लिए पर्याप्त पैसा नहीं दिया जाता है, यह कीसकी चाल है, जिसकी वजह से हम 5-10 गुना दाम में विदेशी चीजे खरीदते है, क्या कारण है की हमारे देश में एक भी सोलर ऊर्जा वैज्ञानिक नहीं है और दुनिया भर के परमाणु वैज्ञानिक है जो हमें हमेशा झूठा अश्वाव्हन देते है की यह परमाणु बिजली सस्ती और निरापद है भारत की परमाणु से सम्बंधित कुल बाजार 750 लाख करोड़ का होगा. जब की हम भारत में 400000 मेगावाट सोलर बिजली बना सकते है,

13-ऐसे कौन से कारण है जिनके कारन हम नेहरू के द्वारा ट्रांसफर अफ पॉवर अग्रीमेंट 14 अगस्त 1947 को दस्तखत करने के बाद भी आज तक विक्सित नहीं बन पाए, जब की हमारी जनता हफ्ते में 90 घंटा काम करती है जबकि कामचोर अंग्रेज हफ्ते में सिर्फ 30 घंटा काम करते है,

14-क्या कारण है की हमारे 5೦ रुपये में 1 डालर और 90 रुपये में 1 पौंड मिलाता है, जब की 1947 में 1 रुपये में 1 डालर मिलता था.

15- मीडिया को निष्पक्ष बनाने के लिए सरकार क्या कदम उठा रही है, मिडिया , टीवी और पत्रिकाए सरकार को बिक जाती है और निराधार और झूठ को भी सच बताकर प्रस्तुत करती है।

16- अगर देश में 2 लाख करोड़ रुपये की नकदी सर्कुलेशन में है तो देश की अर्थव्यवस्था करीब 100 लाख करोड़ रुपयों की होती है. और हमारे देश में रिजर्व बैंक अबतक लगभग 18 लाख करोड़ रुपयों के नोट छाप चुका है और कमसे कम 10 लाख करोड़ रुपये सर्कुलेशन में है. इस हिसाब से देश की अर्थव्यवस्था करीब 400 से 500 लाख करोड़ रुपये होनी चाहिए लेकिन अभी हमारी अर्थव्यवस्था केवल 60 लाख करोड़ की है. जबकि इतनी अर्थव्यवस्था के लिए दो लाख करोड़ से भी कम सर्कुलेशन मनी की जरूरत है.

17- अगर 400 लाख करोड़ रूपये का काला धन देश में वापिस आ जाता है तो देश की अर्थव्यवस्था करीब 20,000 लाख करोड़ रुपये होगी ... क्या आप जानते हैं कि इस समय अमेरिका सबसे शक्तिशाली देश है और उसकी अर्थव्यवस्था करीब 650 लाख करोड़ की है... मतलब 400 लाख करोड़ रुपये वापिस मिलने पर हम अमरीका से भी 30 गुना ज्यादा शक्तिशाली बन सकते है

शनिवार, 17 दिसंबर 2011

माता अब तो साँझ पड़ी है, रुस्यो दिन कद आसी ?


धरती रा थाम्भा कद धसकै, उल्ट्यो आभो कद आसी ?
माता अब तो साँझ पड़ी है, रुस्यो दिन कद आसी ?

हात्यां रा होदा कद टूटे, घोड़ा न कद धमकास्यूं ।
मुछ्याँ म्हारी कद बट खावै, खांडा ने कद खड़कास्यूं ।
...
... सुना पड़ग्या भुज म्हारा ए, अरियाँ नै कद जरकासी ।।
माता अब तो साँझ पड़ी है, रुस्यो दिन कद आसी ?

म्हारे जितां धरती लेग्या, चाकर आज धणी बणग्या,
दोखीडाँ रै दुःख सूं म्हारै, अन्तै में छाला पड़ग्या ।
आंसू झरती आँखड़ल्यां में, राता डोरा कद आसी ।।
माता अब तो साँझ पड़ी है, रुस्यो दिन कद आसी ?

गाठी म्हारी जीभ सुमरता, कान हुआ बोला थारै,
दिन पलट्यो जद मायड़ पल्टी, बेटा नै कुण बुचकारै ।
माँ थारो तिरशूल चलै कद, राकसडा कद आरडासी ।।
माता अब तो साँझ पड़ी है, रुस्यो दिन कद आसी ?

थारै तो लाखां बेटा है, म्हारी मायड़ इक रहसी,
हूँ कपूत जायो हूँ थारै, थनै कुमाता कुण कहसी ।
अब तो थारी पत जावै है, बाघ चढ़यां तू कद आसी ।।
माता अब तो साँझ पड़ी है, रुस्यो दिन कद आसी ?

मंगलवार, 18 अक्तूबर 2011

शौर्य साक्षी सिवाना किलो अण्खलो यूं कहै आव कला राठौड़। मो सिर उतर महैंणो, तो सिर बान्ध मौड़।।

                                                       मारवाड़ के पर्वतीय दुर्गो में सिवाणा के किले का विशेष महत्व है। यह किला बाड़मेर से लगभग 160 मील दक्षिण में पर्वत शिखरो के मध्य अवस्थित है। सिवाना के इस प्राचीन दुर्ग का निर्माण वीरनारायण पंवार ने दसवी शताब्दी में करवाया... था। वह प्रतापी पंवार शासक राज भोज का पुत्र था।
उस समय पंवार बहुत शक्तिशाली थे और उनका एक विशाल क्षेत्र पर आधिपत्य था जिसमें मालवा, चन्द्रावती, जालोर, किराडू, आबू सहित अनेक प्रदेश शामिल थें। तदान्तर सिवाना जालोर के सोनगरा चौहानो के अधिकार में आ गया। ये सोनगरे बहुत वीर और प्रतापी हुए तथा इन्होने ऐबक और इल्तुतमिश सरीखे शक्तिशाली गुलामवंशी सुल्तानो का सफलतापूर्वक प्रतिरोध किया और अपनी स्वत्रन्त्रता अक्षुण्ण बनायी रखी लेकिन सिवाना को सबसे प्रबल चुनौति मिली सुल्तान अलाउदीन खिलजी से। अलाउदीन के आक्रमण के समय सिवाना का आधिपति सालत देव था जो जालोर के शासक कान्हड़देव का भतीजा था। सिवाणा पर अलाउदीन की सेना का पहला आक्रमण 1305 ई में हुआ। तब वीर सातल और सोम (सम्भवतः उसका पुत्र सोमेश्वर) ने कान्हड़देव की सहायकता से खिलजी सेना का डटकर मुकाबला किया। विजय की कोई आशा न देखकर खिलजी की सेना को घेरा उठाने के लिए बाध्य होना पड़ा। राजपुतो की इस प्रारम्भिक सफलता और अपनी पराजय के क्षुब्ध होकर अलाउदीन खिलजी ने 1310 ई. के लगभग स्वंय एक विशाल सेना लेकर सिवाना पर चढाई की और दुर्ग का घेरा। सातलदेव ने बड़ी वीरता के साथ उनका मुकाबला किया तथा शत्रु शिविरो पर छापामार आक्रमणों के साथ किले पर से ढेकुली यन्त्रों के द्वारा निरनतर पत्थर बरसाने और शत्रु सेना के होंसले पस्त कर दिये। लेकिन इस बार अलाउदीन सिवाना पर अधिकार करने के लिए दृढ प्रतिज्ञ था अतः उसने हर संभव उपाय का आश्रय लिया। उसने एक विशाल और ऊंची पाशीब (चबूतरा) बनवायी जिसके द्वारा खिलजी सेना दुर्ग तक पहुचने में सफल हो गयी। अलाउदीन ने वहां के प्रमुख पेयजल स्त्रोत भोडेलाव तालाब को गोमांस से दूषित करवा दिया। कहा जाता है कि इसमें भायल, पंवार नामक व्यक्ति ने विश्वासघात किया। दुर्ग की रक्षा का कोई उपाय न देख वीर सातल सोम सहित अन्य क्षत्रिय योद्वा केसरिया वस्त्र धारण कर शत्रु सेना पर टूट पड़े तथा वीरगति को प्राप्त हुए। 23वीं उल अव्वल मंगलवार को खिलजी सैनिको ने सातलदेव का क्षत-विक्षत शव अलाउदीन के सामने प्रस्तुत किया, जिसने दुर्ग को खैराबाद का नाम दिया। लेकिन अलाउदीन खिलजी की मृत्यु के साथ ही सिवाणा पर उसके वंश का आधिपत्य समाप्त हो गया। तत्पश्चात् सिवाना पर राव मल्लीनाथ राठौड़ के भाई जैतमाल और उसके वंशजों का आधिपत्य रहा। सन् 1538 में राव मालदेव ने सिवाना के तत्कालिन आधिपति राठौड़ डूंगरसी को पराजित कर इस दुर्ग पर अपना अधिकार कर लिया। मालदेव के अधिपत्य का सूचक एक शिलालेख वहां किले के भीतर आज भी विद्यमान है। राव मालदेव ने सिवाना की रक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ किया तथा वहां परकोट (शहरपनाह) का निर्माण करवाया। अपने दुर्भेद्य स्वरुप के कारण सिवाना का दुर्ग संकटकाल में मारवाड़ के राजाओं की शरण स्थली रहा। राव मालदेव ने गिरी सुमेल के युद्व के बाद शेरशाह की सेना द्वारा पीछा किये जाने पर सिवाना किले में आश्रय लिया था तद्नन्तर उनके यशस्वी पुत्र चन्द्रसेन ने सिवाना के किले को केन्द्र बनाकर शक्तिशाली मुगल बादशाह अकबर की सेनाओं का लम्बे अरसे तक प्रतिरोध किया। मुगल आधिपत्य में आने के बाद अकबर ने राव मालदेव के एक पुत्र रायमल को सिवाना दिया। लेकिन कुछ अरसे बाद ही रायमल की मृत्यृ हो गयी और सिवाना उसके पुत्र कल्याणदास (कल्ला) के अधिकार में आ गया।
इस राठौड़ वीर कल्ला रायमलोत की वीरता और पराक्रम से सिवाना को जो प्रसिद्वि और गौरव मिला उससे इतिहास के पृष्ठ आलोकित है। उक्त अवसर उस समय उपस्थित हुआ जब बादशाह अकबर कल्ला राठौड़ से नाराज हो गया और उसने जोधपुर के मोटा राजा उदयसिंह को आदेश दिया वह कल्ला को हटाकर सिवाना पर अधिकार कर ले। अकबर की नाराजगी का मामूली सी बात पर अप्रसन्न होकर बादशाह के एक छोटे मनसबदार को मार दिया था। वीर विनेद में इसका कारण दूसरा बताया गया है। उक्त ग्रन्थ के अनुसार मोटा राजा उदयसिंह ने शहजादे सलीम के साथ अपनी पुत्री का विवाह कर दिया था। कल्ला इस विवाह सम्बन्ध को अनुचित एवं आपत्तिजनक मानता था और उदयसिंह से झगड़ा करता था। वास्तविक कारण चाहे जो भी रहा हो मोटा राजा उदयसिंह ने शाही सेना की सहायता से सिवाना पर आक्रमण किया। कल्ला राठौड़ ने स्वाभिमान और वीरता को उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करते हुए मोटा राजा उदयसिंह की सेना के साथ भीषण युद्व किया और लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की। कल्ला की पत्नी हाड़ी रानी (बूंदी के राव सुरजन हाड़ा की पुत्री) ने दूंर्ग की ललनाओं के साथ जौहर का अनुष्ठान किया। कल्ला रायमलोत की वीरता और पराक्रम से सम्बन्धित दोहे प्रसिद्व है। वीरता और शौर्य की रोमांचक घटनाओं का साक्षी सिवाना का किला काल के क्रूर प्रवाह को झेलता हुआ आज भी शान से खड़ा है।

शाका एवं जौहर
सिवाना का पहला साका 1310 में हुआ जब वीरसातालदेव और (सोमेश्वर) ने अलाउदीन खिलजी के भीषण आक्रमण का प्रतिरोध करते हुए प्राणोत्सर्ग किया तथा वीरागनाओं ने जौहर की ज्वाला प्रज्ज्वलित की। विजयी के पश्चात दुर्ग का नाम खैराबाद रखा गया।
दूसरा शाका अकबर के शासन काल में हुआ। जब मोटा राजा उदयसिंह ने शाही सेना की सहायता से सिवाना दुर्ग पर आक्रमण किया। वहां के स्वाभिमानी शासक वीर कल्ला राठौड़ ने भीषण युद्व करते हुए वीरगति पायी और महिलाओं ने जौहर किया।-   रामदेवसिह बालेसर

रविवार, 21 अगस्त 2011

श्रीकृष्ण की ये 6 अद्भुत बातें अपनाएं, फिर सफलता चूमेंगी आपके कदम

मानव जीवन को सुर-दुर्लभ कहा गया है, यानी देवताओं को भी कठिनाई से हांसिल होने वाली स्थिति। जिस जीवन को पाने के लिय देवता भी तरसते हों, अगर उसे बगैर तैयारी के, बिना किसी योजना और गंभीर सोच-विचार के वैसे ही बिता दिया जाए तो यह हमारी समझदारी नहीं होगी।
दुनियादारी से जुड़े सारे काम, व्यापार-व्यवसाय और शादी-ब्याह तक को सफल बनाने या सही अंजाम तक पहुंचाने के लिये प्लानिंग की जरूरत पड़ती है, तो फिर जिंदगी को बगैर किसी प्लानिंग के कैसे बीतने दिया जा सकता है। मगर अधिकांश लोगों के साथ हो यही रहा है। जहां जीवन और उसके प्रबंधन की बात आए तो सबसे पहले पूर्णावतार श्री कृष्ण का नाम याद आता है।
श्रीकृष्ण पूर्ण कलाओं के अवतार हुए हैं। सौलहों कलाएं जिनकी विकसित हों, ऐसे अवतार थे श्रीकृष्ण। श्रीकृष्ण ने स्वयं तो सफल और सार्थक जीवन जीया ही साथ ही अपने करीबी दूसरे लोगों को भी जीवन को सार्थक बनाने, संवारने, निखारने में सहयोग किया। जीवन पूरी तरह से खिल व महक सके इसके सारे सूत्र श्रीकृष्ण ने दिये।
संतान की परवरिश कैसे हो इस प्लानिंग की कमी रह जाने के कारण धृतराष्ट्र-गांधारी के 100 कौरव पुत्रों का भविष्य अंधकार भरे दुखांत में बदल गया। वहीं दूसरी तरफ कृष्ण की बुआ देवी कुंती ने पांचों पाण्डु पुत्रों को प्रारंभ से ही ऐसे संस्कारों में ढाला कि बड़े होकर वे एक से बढ़कर एक सफलताओं और उपलब्धियों को प्राप्त करते चले गए।
देवी कुंती द्वारा दिये गए श्रेष्ठ संस्कारों के कारण पाण्डवों के जीवन की शुरुआत तो सुधर ही चुकी थी, लेकिन जब से पाण्डवों को श्रीकृष्ण का साथ और मार्गदर्शन मिला उनके जीवन की दिशा और दशा दोनों बदल गए। श्री कृष्ण द्वारा बताएऔर समझाए गए जीवनप्रबंधन के सूत्रों के कारण ही जूए में हारे हुए दर-दर भटकने वाले निराश पाण्डव फिर से अपना खोया हुआ आत्मविश्वास और अधिकार प्राप्त कर पाते हैं।
महाभारत के युद्ध का सर्वश्रेष्ठ घोषित यौद्धा अर्जुन श्रीकृष्ण के मार्गदर्शन मे ही इस योग्यता और मुकाम को हांसिल कर पाया था।
आइए जानते हैं उन सूत्रों को जो श्री कृष्ण ने बनाए और बताए हैं। इन सूत्रों को अपनाकर हम भी अर्जुन की तरह से अपने जीवन को सार्थक ही नहीं बल्कि कामयाबियों के सर्वोच्च शिखरों तक पहुंचा सकते हैं....
जीवन निखार के 6 अद्भुत सूत्र:
1. समर्पण- पहला और सबसे अहम् सूत्र जो जिंदगी को बनाता, संवावता और निखारता है, वह है अपने काम के प्रति पूरा का पूरा समर्पण। समर्पण ऐसा कि जिसमे फिर कोई भी शंका और संदेह की गुंजाइश न रह जाए।
2. अविचलन- काम के परिणाम या नतीजे को लेकर भी किसी प्रकार की बैचेनी या उतावलापन न हो। किसी भी प्रकार का विचलन समस्या ही पैदा करेगा, इससे आपकी एकाग्रता तो टूटेगी ही साथ में गति भी धीमी पड़ जाएगी।
3. संघर्ष- जिंदगी में कठिनाइयों, मुसीबतों, दु:खों या कड़वाहटों का होना सामान्य बात है। इस हकीकत को हर कोई जानता है। लेकिन बहुत गहराई में छुपी हुई सच्चाई यह है कि जीवन में दुखों के रूप में आने वाले संघर्ष ही जीवन का सौन्दर्य हैं। आप दुनिया के किसी भी सुन्दर और सफल जीवन को देख लें और उसमें से यदि संघर्षों और दुखों को निकाल दिया जाए तो उसका सौन्दर्य और सुगंध समाप्त हो जाएगा।
4. केन्द्र- श्रीकृष्ण ने पाण्डवों के जीवन को संवारने और सफल बनाने में ही क्यों सहयोग किया। क्या इसलिये कि पाण्डव इनके रिश्तेदार थे? रिश्तेदार तो कंस भी कम नहीं था, लेकिन सगे मामा को खुद अपने ही हाथों मार डाला।
पाण्डवों का साथ देने के पीछे कारण रिश्तेदारी नहीं बल्कि कुछ ओर ही था। कृष्ण के मन में ओरों से अधिक जगह बना सके, क्योंकि पाण्डव धर्म, सत्य और नीति के मार्ग पर हर सुख-दु:ख में डटे रहे। उन्होने केन्द्र में श्रीकृष्ण और धर्म को अंत तक बनाए रखा, यही उनकी जीत का कारण बना।
5. भावुकता- भावनाएं जीवन में रहें तो कोई हर्ज नहीं लेकिन संतुलन और सीमा सदैव बनी रहना चाहिये। भावनाओं में बहकर कर्तव्य से विमुख हो जाना या कमजोर पड़ जाना भावनाओं की नहीं बल्कि भावनाओं के असंतुलन की गड़बड़ का परिणाम है। यही हुआ था अर्जुन के साथ, जिन भावनाओं को हृदय की उदारता या महानता मानकर अर्जुन धर्म युद्ध से विमुख हो रहा था वह भावनाओं का असंतुलन ही था। गीता के माध्यम से श्रीकृष्ण ने अर्जुन के जीवन में संतुलन लाया।
6. परिणाम की चिंता- अच्छाई, सच्चाई या भलाई का रास्ता आमतौर पर कठिन हुआ ही करता है। इसलिये ऐसे कामों में इंसान परिणाम को लेकर अक्सर आशंकित और चिंतित रहने लगता है। इस चिंता और बैचेनी का बुरा असर यह होता है कि व्यक्ति का ध्यान अपने कर्तव्य से भटकने लगता है। साथ ही इंसान की कार्यक्षमता और योग्यता भी प्रभावित होकर घटने लगती है। इसलिये कर्म करें, परिणाम की चिंता परमात्मा पर छोड़ दी जाए।

श्री कृष्ण शरणम ममः ॥ जय श्री कृष्णा ॥ भगवान श्री कृष्ण परमब्रह्म पुरुषोत्तम हैं, उनकी अनन्यभाव से भक्ति करने वाले जीवों का सर्व विधि कल्याण है। शुद्धाद्वैत सम्प्रदाय एवं पुष्टिमार्ग में शरण, समर्पण और सेवा का क्रम निश्चित किया गया है, जिनमें नवधा भक्ति का समावेश हो जाता है इसलिए हमारे आचार्य श्री के उपदेशानुसार प्रथम प्रभु की शरण में जाने का आदेश है। जीव प्रभु का अंश है, प्रभु से वियोग होने के कारण वह विविध दोष तथा दुःखों से युक्त हो रहा है। आचार्य श्री ने समस्त दोषों तथा दुःखों की निवृत्ति के लिये एवं निर्दोष बनने के लिये तथा आत्यन्तिक सुख प्राप्ति के लिये भगवान श्री कृष्ण की शरण में जाने की शिक्षा तथा दीक्षा दी है। इसी दीक्षा के अवसर पर आचार्य श्री ने शरण भावना प्रधान अष्टाक्षर महामन्त्र का उपदेश देकर सदैव शरण भावना रखने की शिक्षा दी है। जीव के दोष मात्र का कारण उसका अहंकार तथा अभिमान है। इस अहंकार का उदय न हो तथा दीनताभाव सदैव सुदृढ रहे इसके लिये “श्री कृष्ण शरणम ममः” अर्थात मेरे लिये श्री कृष्ण ही शरण हैं, रक्षक हैं, आश्रय हैं – वही मेरे लिये सर्वस्व हैं। मैं दास हूं, प्रभु मेरे स्वामी हैं और मैं आपकी शरण में हूँ। इस भावना से दीनता बनी रहती है, तथा अहंकार का उदय नही होता ।
धन अकिंचन का श्री कृष्ण शरणम ममः। लक्ष्य जीवन का श्री कृष्ण शरणम ममः। दीन दुःखियों का, निर्बल जनों का सदा, दृढ सहारा है श्री कृष्ण शरणम ममः। वैष्णवों का हितैषी, सदन शांति का, प्राण प्यारा है श्री कृष्ण शरणम ममः। काटने के लिये मोह जंजाल को, तेज तलवार श्री कृष्ण शरणम ममः। नाम ही मंत्र है मंत्र ही नाम है, है महामंत्र श्री कृष्ण शरणम ममः। छूट जाते है साधन सभी अंत में, साथ रहता है श्री कृष्ण शरणम ममः। साथी दुनिया में कोई किसी का नही, सच्चा साथी है श्री कृष्ण शरणम ममः। तरना चाहो जो संसार सागर से तो, पार कर देगा श्री कृष्ण शरणम ममः। शत्रु हारेंगे होगी विजय आपकी , याद रखना है श्री कृष्ण शरणम ममः। सुख मिलेगा सफलता स्वयं आयेगी, तुम जपो नित्य श्री कृष्ण शरणम ममः। पूरे होंगे मनोरथ सभी सर्वदा, जो न भूलोगे श्री कृष्ण शरणम ममः। दीनबंधु कृपासिंधु गोविन्द के, प्रेम का सिंधु श्री कृष्ण शरणम ममः। दुःख दारिद्र दुर्भाग्य को मेट कर, देता सौभाग्य श्री कृष्ण शरणम ममः। ब्रह्मा-विष्णु-महेश भी प्रेम से, नित्य जपते हैं श्री कृष्ण शरणम ममः। शेष सनकादि नारद विषारद सभी , रट लगाते हैं श्री कृष्ण शरणम ममः। मंत्र जितने भी दुनिया में विख्यात हैं, मूल सबका है श्री कृष्ण शरणम ममः। पानो चाहो जो सिद्धि अनायास है, वे जपें नित्य श्री कृष्ण शरणम ममः। भक्त दुनिया में जितने हुए आजतक, सबका आधार श्री कृष्ण शरणम ममः। लट्टुओं की तरह विश्व के जीव हैं, काम विद्युत का श्री कृष्ण शरणम ममः। दुष्ट राक्षस डराने लगे जिस समय, बोले प्रहलाद श्री कृष्ण शरणम ममः। राणा बोले कि रक्षक तेरा कौन है, मीरा बोली कि श्री कृष्ण शरणम ममः। बोलो श्रद्धा से, विश्वास से, प्रेम से, कृष्ण श्री कृष्ण श्री कृष्ण शरणम ममः। प्राणवल्लभ के वल्लभ हैं वल्लभ प्रभु, उनका वल्लभ है श्री कृष्ण शरणम ममः। दुख मिटाता है देकर सहारा सदा, सुख बढाता है श्री कृष्ण शरणम ममः। धाम आनंद का, नाम गोविन्द का, सिंधु रस का है श्री कृष्ण शरणम ममः। जग में आनन्द अक्षय अचल संपदा, नित्य देता है श्री कृष्ण शरणम ममः। पांडवों की विजय क्यों हुई युद्ध में, उसका कारण है श्री कृष्ण शरणम ममः। द्रौपदी का सहारा यही एक था, नित्य जपती थी श्री कृष्ण शरणम ममः। ब्रज के गोपों का गोपीजनों का सदा, एक आश्रय था श्री कृष्ण शरणम ममः। वल्लभाचार्य का विट्ठलाधीश का, मूल साधन था श्री कृष्ण शरणम ममः। पुष्टीमार्गीय वैष्णव जनों के लिये, प्राणजीवन है श्री कृष्ण शरणम ममः। लाभ लौकिक-अलौकिक विविध भांति के, सबसे बढकर है श्री कृष्ण शरणम ममः। क्षीण हो जाते हैं पुण्य सब भांति के, किंतु अक्षय है श्री कृष्ण शरणम ममः। काम सुधरेंगे सब लोक परलोक के, तुम जपोगे जो श्री कृष्ण शरणम ममः। बल है निर्बल का, निर्धन का धन है यही, गुन है निर्गुण का श्री कृष्ण शरणम ममः। यह असम्भव को संभव बनाता सदा, शक्तिशाली है श्री कृष्ण शरणम ममः। कोई अन्तर नही नाम में रूप में, है स्वयं कृष्ण श्री कृष्ण शरणम ममः। जिनको विश्वास नही वे भटकते रहें, हम तो जपते हैं श्री कृष्ण शरणम ममः। खिन्नता , हीनता और पराधीनता, सब मिटाता है श्री कृष्ण शरणम ममः। भाग जाता है भय, होता निर्भय हृदय, याद आते ही श्री कृष्ण शरणम ममः। दूर रखता है दुःसंग से सर्वदा, देता सत्संग श्री कृष्ण शरणम ममः। रंग अद्भुत चढाता है सत्संग का, संग रहता है श्री कृष्ण शरणम ममः। कृष्ण का प्यार, पीयूष की धार है, शास्त्र का सार श्री कृष्ण शरणम ममः। काम को, क्रोध को, मोह को, लोभ को , नष्ट करता है श्री कृष्ण शरणम ममः। मेट दुख-द्वन्द, भव-फन्द छल-छंद सब, देता आनन्द श्री कृष्ण शरणम ममः। पाप का, ताप का, क्लेश का, द्वेष का, नाश करता है श्री कृष्ण शरणम ममः। ज्ञान ध्यानादि से, योग यज्ञादि से , सबसे बढकर है श्री कृष्ण शरणम ममः। है अहोभाग्य उसके जिसे अन्त में, याद आता है श्री कृष्ण शरणम ममः। धन्य है भक्त वह जिसके मन में सदा, वास करता है श्री कृष्ण शरणम ममः। कृष्ण बसते हृदय में उसी भक्त के, जो भी जपता है श्री कृष्ण शरणम ममः। छूट जाते हैं धन-जन-भवन एक दिन, साथ जाता है श्री कृष्ण शरणम ममः। बस जरूरत है श्रद्धा की, विश्वास की, कल्पतरु ही हैं श्री कृष्ण शरणम ममः। चलते फिरते जपो या जपो बैठकर, है सफल मंत्र श्री कृष्ण शरणम ममः। चाहे अन्दर जपो, चाहे बाहर जपो,अंतर्यामी है श्री कृष्ण शरणम ममः। आज तक जो किये हैं सुकृत आपने, फल हे उनका श्री कृष्ण शरणम ममः। थक गये हैं जो जग में भटक कर उन्हे, देता विश्राम श्री कृष्ण शरणम ममः। जग में जितने भी साधन हैं छोटे बडे, सबका स्वामी है श्री कृष्ण शरणम ममः। जाना चाहो जो लीला में श्री कृष्ण की, तो जपो नित्य श्री कृष्ण शरणम ममः। शुद्धि करनी हो जीवन की, मन की तुम्हे, तो जपो नित्य श्री कृष्ण शरणम ममः। गेय श्रद्धेय है ये अनुपमेय है, है स्वयं श्रेय श्री कृष्ण शरणम ममः। मन की ममता अहंता अभी मेट कर, समता देता है श्री कृष्ण शरणम ममः। कृष्ण होते प्रकट अपने जन के निकट, नित्य रटते जो श्री कृष्ण शरणम ममः। दुनिया झुकती है चरणों में उनके सदा, नित्य जपते जो श्री कृष्ण शरणम ममः। शुद्धि करता है अन्तःकरण की सदा, बुद्धि देता है श्री कृष्ण शरणम ममः। भ्रांति हरता है सिद्धांत के ज्ञान से, क्रांतिकारी है श्री कृष्ण शरणम ममः। भक्ति का ज्ञान का और वैराग्य का, भाव भरता है श्री कृष्ण शरणम ममः। बन्द आँखों को सत्संग के ज्ञान से, खोल देता है श्री कृष्ण शरणम ममः। दो सो बावन ओ चौरासी वैष्णव सभी, नित्य जपते हैं श्री कृष्ण शरणम ममः। पुष्टिमार्गीय वैष्णव करोडों हैं जो, नित्य जपते हैं श्री कृष्ण शरणम ममः। सेवा उत्तम है सब में सदा मानसी, श्रेष्ठ सुमिरन है श्री कृष्ण शरणम ममः। कोई झंझट नही कोई खटपट नही, सीधा सादा है श्री कृष्ण शरणम ममः। चस्का लग जाये रस का तो कहना ही क्या, अपने बस का है श्री कृष्ण शरणम ममः। कृष्ण के प्रेम का, नेम का, क्षेम का, केन्द्र सबका है श्री कृष्ण शरणम ममः। अपने गौरव तराजू में साधन सभी, तोल देता है श्री कृष्ण शरणम ममः। ज्ञान का, ध्यान का, मान सम्मान का, दान देता है श्री कृष्ण शरणम ममः। मानसी सिद्ध करता है सद्भाव की, वृष्टि करता है श्री कृष्ण शरणम ममः। ब्रह्म साकार भी है निराकार भी, सिद्ध करता है श्री कृष्ण शरणम ममः। मर्म समझाता है वेद के भेद का, खेद हरता है श्री कृष्ण शरणम ममः। सच्चे वैष्णव की ये मुख्य पहचान है, नित्य जपता है श्री कृष्ण शरणम ममः। वृद्धि करता है आयुष्य आरोग्य की, यह रसायन है श्री कृष्ण शरणम ममः। मेट देता है भ्रम और संशय सभी, सिद्ध सदगुरु है श्री कृष्ण शरणम ममः। बीज दुनिया में होता है हर चीज जा, भक्ति का बीज श्री कृष्ण शरणम ममः। चारों युग में और चौदह भुवन में सदा, सर्व व्यापक है श्री कृष्ण शरणम ममः। मन को निर्मल बना भगवदीय को , देता रस दान श्री कृष्ण शरणम ममः। सुहृदय के हिंडोले में श्री कृष्ण को, नित झुलाता है श्री कृष्ण शरणम ममः। रास के जो रसिक हैं उन्हे पास में, नित बुलाता है श्री कृष्ण शरणम ममः। आस विश्वास रखते हैं जो कृष्ण में , दास जपते हैं श्री कृष्ण शरणम ममः। अन्याश्रय से डरते हैं वैष्णव सदा, उनका आश्रय है श्री कृष्ण शरणम ममः। प्रेम बाजार में सदगुरु जो हरि, रत्न देता है श्री कृष्ण शरणम ममः। तोला जाता नही मोल बिकता नही, रत्न अनमोल श्री कृष्ण शरणम ममः। भाग्यशाली भगवदीय जन ही सदा, प्राप्त करते हैं श्री कृष्ण शरणम ममः। जो कृपा पात्र हैं बस उन्ही के लिये, है ये वरदान श्री कृष्ण शरणम ममः। है बडे भाग्य उनके जिसे मिल गया, देव दुर्लभ है श्री कृष्ण शरणम ममः। मिल गया है जिन्हे वे सुने ध्यान से, वे धरोहर हैं श्री कृष्ण शरणम ममः। है ये गोलोक का मार्गदर्शक सखा, नित्य रटना है श्री कृष्ण शरणम ममः। जेबकतरों, अविश्वासियों से सदा, गुप्त रखना है श्री कृष्ण शरणम ममः। छोड देते हैं अपने सभी लोग तब, साथ देता है श्री कृष्ण शरणम ममः। टूट जते हैं ममता के धागे सभी, साथ देता है श्री कृष्ण शरणम ममः। पर्दा हटाता है दिल में अज्ञान का, कृष्ण बनता है श्री कृष्ण शरणम ममः। देखता है न अपराध जन का कभी, है क्षमाशील श्री कृष्ण शरणम ममः। रंग की , धोप के, धन की, परवाह नही, प्रेम चाहता है श्री कृष्ण शरणम ममः। दूर हरि से न हरिजन रहे एक भी, चाहता है यह श्री कृष्ण शरणम ममः। माता करती हिफाजत उसी तौर से , रक्षा करता है श्री कृष्ण शरणम ममः। आप उनके बनें वे बने आपके, यही कहता है श्री कृष्ण शरणम ममः। भक्त सोता है तब भी स्वयं जाग कर, पहरा देता है श्री कृष्ण शरणम ममः। चाहे मानो न मानो खुशी आपकी, सच्चा धन तो है, श्री कृष्ण शरणम ममः। डर नही है किसी द्वेत का, प्रेत का , शुद्धद्वैत श्री कृष्ण शरणम ममः। यह सीधी सडक चल पडो बेधडक, साथ रक्षक है श्री कृष्ण शरणम ममः। हारते हे नही वे कहीं भी कभी, नित्य जपते जो श्री कृष्ण शरणम ममः। श्याम सुंदर निकुंजों में मिल जायेगें, ढूंढ लायेगा श्री कृष्ण शरणम ममः। दुनिया सपना है अपना न कोई यहाँ , नित्य जपना है श्री कृष्ण शरणम ममः। सत्य शिव और सुन्दर है सर्वस्व जो, वो है नवनीत श्री कृष्ण शरणम ममः। धन अकिंचन का श्री कृष्ण शरणम ममः। लक्ष्य जीवन का श्री कृष्ण शरणम ममः। *************************************************************
भगवान श्रीकृष्ण का लीलामय जीवन अनके प्रेरणाओं व मार्गदर्शन से भरा हुआ है। उन्हें पूर्ण पुरुष लीला अवतार कहा गया है। उनकी दिव्य लीलाओं का वर्णन श्री व्यास ने श्रीमद्भागवत पुराण में विस्तार से किया है। भगवान श्रीकृष्ण का चरित्र मानव को धर्म, प्रेम, करुणा, ज्ञान, त्याग, साहस व कर्तव्य के प्रति प्रेरित करता है। उनकी भक्ति मानव को जीवन की पूर्णता की ओर ले जाती है। भाद्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी को देश व विदेश में कृष्ण जन्म को उत्सव के रूप में मनाया जाता है। उनका जन्म बुधवार को मध्यरात्रि में हुआ। उनके जन्म के समय वृषभ लग्न था व चंद्रमा वृषभ राशि में था। रोहिणी नक्षत्र में जन्मे कृष्ण का सम्पूर्ण जीवन विविध लीलाओं से युक्त है। कृष्ण भारतीय जीवन का आदर्श हैं और उनकी भक्ति मानव को उसके जीवन की पूर्णता की ओर ले जाती है। भगवान विष्णु के कुल 24 अवतारों के क्रम में कृष्ण अवतार का क्रम 22वां है। धरती पर धर्म की स्थापना के लिए ही द्वापर में भगवान विष्णु कृष्ण के रूप में मथुरा के राजा कंस के कारागार में माता देवकी के गर्भ से अवतरित हुए। उनका बाल्य जीवन गोकुल व वृंदावन में बीता। ND गोकुल की गलियों में व मां यशोदा की गोद में पले-बढ़े कृष्ण ने अपनी बाल्यावस्था में ही अपने परम ब्रह्म होने की अनुभूति से यशोदा व बृजवासियों को परिचित करा दिया था। उन्होंने पूतना, बकासुर, अघासुर, धेनुक और मयपुत्र व्योमासुर का वध कर बृज को भय मुक्त किया तो दूसरी ओर इंद्र के अभिमान को तोड़ गोवर्धन पर्वत की पूजा को स्थापित किया। बाल्य अवस्था में कृष्ण ने न केवल दैत्यों का संहार किया बल्कि गौ-पालन उनकी रक्षा व उनके संवर्धन के लिए समाज को प्रेरित भी किया। उनके जीवन का उत्तरार्ध महाभारत के युद्ध व गीता के अमृत संदेश से भरा रहा। धर्म, सत्य व न्याय के पक्ष को स्थापित करने के लिए ही कृष्ण ने महाभारत के युद्ध में पांडवों का साथ दिया। महाभारत के युद्ध में विचलित अपने सखा अर्जुन को श्रीकृष्ण ने वैराग्य से विरक्ति दिलाने के लिए ही गीता का संदेश दिया। गीता का यह संदेश आज भी पूरे विश्व में अद्वितीय ग्रंथ के रूप में मान्य है। भगवान कृष्ण ने जहां अभिमानियों के घमंड़ को तोड़ा, वहीं अपने प्रति स्नेह व भक्ति करने वालों को सहारा दिया। राज्य शक्ति के मद में चूर कौरवों के 56 भोग का त्याग कर भगवान कृष्ण ने विदुर की पत्नी के हाथ से साग व केले का भोग ग्रहण कर विदुराणी का मान बढ़ाया। द्वारका का राजा होने के बाद भी उन्होंने अपने बाल सखा दीन-हीन ब्राह्मण सुदामा के तीन मुट्ठी चावल को प्रेम से ग्रहण कर उनकी दरिद्रता दूर कर मित्र धर्म का पालन किया

सोमवार, 15 अगस्त 2011

**********वीर शीहीदो को कोटी कोटी नमन ***********

**********वीर शीहीदो को कोटी कोटी नमन ***********

भिड़ पङीया परखलो,है रजपूती री खाण,
डट जाऊ तो हटु नाही है धरती माँता थारी आण,

...मुख न रण सूं मोङियौ,सिरे मायङ सतपूत,
कालै केसा कटंयौ, समर दीयो सबूत,

ओछी ऊमर ऊठ गया,सूरापै रै काज,
जुग जुग जीवो जगत मों,सुरपुर रा सरताज,

जबरो जंग ऍ जीतिया,रच आया इतिहास,
मरू ज महकै मोद सूं,हिंवङे बौत उजास,

शेरगढ़ री शेर धरा,मरदों तणी मरोङ,
इण धर सूरा नीपजै,किताक लाख करोङ,

रजपूती री रीत अठै,बैता खोडे री धार,
मूंछा सूर मरोङता,रे कारै री गाल,

धीर वीर टणकेल भङ,हिंवङै हाल उजास,
शेरगढ रे लाडलौ,रण रचियो इतिहास,

मंगलवार, 9 अगस्त 2011

चलना है अब तो उसी मार्ग, जो मार्ग दिखाया प्रताप ने॥
"माई ऐडा पूत जण जैडा राणा प्रताप अकबर सोतो उज के जाण सिराणे साँप"
"चार बांस चौबीस गज, अष्ट अंगुल प्रमाण ता ऊपर सुलतान है, मत चूके चौहान"
"बलहट बँका देवड़ा, करतब बँका गौड़ हाडा बँका गाढ़ में, रण बँका राठौड़"!!

शनिवार, 30 जुलाई 2011

कहानीः आत्मसंतोष की दौलत

एक गांव में एक गरीब आदमी रहता था। वह बहुत मेहनत करता, अपनी ओर से पूरा श्रम करता, लेकिन फिर भी वह धन न कमा पाता। इस प्रकार उसके दिन बड़ी मुश्किल में बीत रहे थे। कई बार तो ऐसा हो जाता कि उसे कई-कई दिन तक सिर्फ एक वक्त का खाना खाकर ही गुज़ारा करना पड़ता। इस मुसीबत से छुटकारा पाने का कोई उपाय उसे न सूझता।

एक दिन उस गरीब आदमी को एक महात्माजी मिल गए। गरीब ने उन महात्माजी की बहुत सेवा की। महात्माजी उसकी सेवा से प्रसन्न हो गए और उसे धन की देवी की आराधना का एक मंत्र दिया। मंत्र से कैसे देवी की स्तुति व स्मरण किया जाए, उसकी पूरी विधि भी महात्माजी ने उसे अच्छी तरह समझा दी।

गरीब उस मंत्र से देवी की नियमित प्रार्थना करने लगा। कुछ दिन मंत्र आराधना करने पर देवी उससे प्रसन्न हुईं और उसके सामने प्रकट हुईं। देवी ने उस गरीब से कहा, ‘मैं तुम्हारी आराधना से बहुत प्रसन्न हूं। बोलो, क्या चाहते हो? नि:संकोच होकर मांगो।’

देवी को इस प्रकार अपने सामने प्रकट हुआ देख वह गरीब घबरा गया। क्या मांगा जाए, यह वह तुरंत तय ही नहीं कर पाया, इसलिए हड़बड़ाहट में बोल पड़ा, ‘देवी, इस समय तो नहीं, हां कल मैं आप से उचित वरदान मां लूंगा।’ देवी अगले दिन प्रात: आने के लिए कहकर अंतध्र्यान हो गईं।

घर जाकर गरीब सोच में पड़ गया कि देवी से क्या मांगा जाए? उसके मन में आया कि उसके पास रहने के लिए घर नहीं है, इसलिए देवी से यही सबसे पहले मांगा जाए। अब सवाल आया कि घर कैसा होना चाहिए। वह घर के आकार-प्रकार व उसमें होने वाली विभिन्न सुख-सुविधाओं के बारे में विचार करने लगा। फिर उसने सोचा कि जब देवी मुझे मुंहमांगा वरदान देने के लिए तैयार हैं, तो केवल घर ही क्यों मांगू। ये ज़मींदार लोग गांव के सब लोगों पर रौब गांठते हैं, जब देखो तब हुक्म चलाते हैं। इसलिए देवी से वर मांगकर मैं ज़मींदार हो जाऊं, तो अच्छा रहे। यह सब सोचकर उसने ज़मींदारी मांगने का निर्णय कर लिया।

ज़मींदार बनने का विचार आने के बाद वह सोचने लगा कि आखिर जब लगान भरने का समय आता है, तब ये ज़मींदार भी तो तहसीलदार साहब की आरज़ू-मिन्नतें करते हैं। इस प्रकार इन ज़मींदारों से बड़ा तो तहसीलदार ही है, इसलिए जब बनना ही है तो तहसीलदार क्यों न बन जाऊं। इस तरह वह तहसीलदार बनने की इच्छा करने लगा। अब वह अपने इस निर्णय से खुश था।

लेकिन, उसने मन में कुछ न कुछ चलता ही रहता। अब कुछ देर बाद उसे जिलाधीश का ध्यान आया। वह जानता था कि जिलाधीश साहब के सामने तहसीलदार भी कुछ नहीं है। तहसीलदार तो भीगी बिल्ली बना रहता है जिलाधीश के सामने। इस तरह

उसे अब तहसीलदार का पद भी फीका दिखाई पड़ने लगा और उसकी जिलाधीश बनने की इच्छा बलवान हो उठी। इस प्रकार उसकी एक से एक नवीन इच्छा बढ़ती चली गईं। वह सोचने-विचारने में ही इतना फंस गया कि यह तय नहीं कर पाया कि क्या मांगा जाए। उसी सोचने की चिंता में दिन तो बीता ही, रात भी बीत गई।

दूसरे दिन सवेरा हुआ। गरीब आदमी अब तक भी कुछ निर्णय न कर पाया था कि उसे क्या वरदान मांगना चाहिए। उधर ज्यों ही सूरज की पहली किरण पृथ्वी पर पड़ी, त्यों ही देवी उसके सामने प्रकट हो गईं। उन्होंने उस गरीब से पूछा, ‘बोलो तुम क्या वरदान मांगाना चाहते हो? अब तो तुमने सोच लिया होगा कि तुम्हें क्या मांगना है?’

गरीब ने हाथ जोड़कर कहा, ‘देवी, मुझे कुछ नहीं चाहिए। मुझे तो सिर्फ भगवान की भक्ति और आत्मसंतोष का गुण दीजिए। यही मेरे लिए पर्याप्त है।’
देवी ने पूछा, ‘क्यों, तुमने घर-द्वार, ऐशो-आराम या धन-दौलत क्यों नहीं मांगी?’

गरीब विनम्रता से बोला, ‘मां, मेरे पास दौलत नहीं आई, बस आने की आशा मात्र हुई, तो मुझे उसकी चिंता से रातभर नींद नहीं आई। यदि वास्तव में मुझे दौलत मिल जाएगी, तो फिर नींद तो एकदम विदा ही हो जाएगी। साथ ही न मालूम और कौन-कौन सी मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा। इसलिए मैं जैसा हूं, वैसा ही रहना चाहता हूं। आत्मसंतोष का गुण ही सबसे बड़ी दौलत होती है, आप मुझे यही दीजिए। साथ ही यह संसार सागर पार करने के लिए भगवान नाम के स्मरण का गुण दीजिए।’
देवी ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा और आशीर्वाद देकर अंतध्र्यान हो गईं। वह गरीब पहले की तरह खुशी से अपना जीवन बिताने लगा। फिर उसे कभी भी धन की लालसा नहीं हुई।
इस्लामाबाद. पाकिस्तान के बलूचिस्‍तान प्रांत में रहने वाले हिंदुओं की सुरक्षा में सरकार नाकाम साबित हुई है। नतीजतन हिंदू मुल्‍क छोड़ कर भारत में बसना चाह रहे हैं।
बलूचिस्‍तान के 100 हिंदू परिवार भारत में शरण लेने का प्रयास कर रहे हैं। बलूचिस्तान में हिंदू परिवार के सदस्यों के साथ बड़े पैमाने पर अपहरण और फिरौती वसूलने की घटनाएं हो रही हैं। प्रशासन से भी पर्याप्त सुरक्षा न मिलने के कारण, अब वे भारत जाने और वहीं रहने का प्रयास कर रहे हैं। कुछ दिन पहले एक अधिकारी के हवाले से खबर आई थी कि ऐसे परिवारों की संख्‍या मात्र 27 है, लेकिन यहां के एक अखबार 'द एक्सप्रेस ट्रिब्यून' के अनुसार ऐसे परिवारों की संख्‍या सौ से भी ज्‍यादा है।
बलूचिस्तान के दक्षिणी पश्चिमी हिस्से में हाल में हिंदुओं के अपहरण की कई वारदात हुई हैं। पिछले साल करीब 291 व्यक्तियों का अपहरण किया गया, जिसमें अधिकांश हिंदू थे। अकेले राजधानी क्वेटा में एक साल में 8 व्यक्तियों का अपहरण हुआ है, जिनमें से 4 हिंदू थे। नसीराबाद जिले में भी हालात काफी खराब हैं। यहां 2010 में 28 व्यक्तियों का अपहरण किया गया, जिसमें से आधे अल्पसंख्यक समुदाय के थे। 
बलूचिस्तान के मस्तांग क्षेत्र के पांच हिंदू परिवार भारत में शरण ले चुके हैं और बाकी भी भारत आने की कोशिश कर रहे हैं। यहां रहने वाले विजय कुमार ने कहा यहां रहना हिंदुओं के लिए सुरक्षित नहीं है। एक अन्य व्यक्ति सुरेश कुमार ने कहा कि यहां कानून-व्यवस्था नहीं के बराबर है और हिंदुओं को परेशान किया जा रहा है।
अखबार में छपी रिपोर्ट के अनुसार अपहरण किए गए अधिकांश पीड़ित भारी रकम चुका कर ही रिहा हुए हैं। लेकिन पीड़ित परिवार इस बात का खुलासा नहीं कर रहे कि उन्होंने कितनी रकम चुकाई क्योंकि उन्हें डर है कि वे फिर से अपराधियों का निशाना बन सकते हैं।
करीब 16 महीने पहले यहां के जाने-माने व्यापारी जुहारी लाल का अपहरण कर लिया गया, लेकिन आज तक उनका कुछ पता नहीं चला है। हाल ही में पाकिस्तान में धार्मिक गुरु लख्मीचंद गर्जी का अपहरण कर लिया गया, जिनका अभी तक कुछ अता पता नहीं है। सरकार बस चिंता भर जता रही है। बलूचिस्तान के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री बसंतलाल गुलशन के अनुसार इन घटनाओं से सरकार चिंतित है।
बलूचिस्तान में हुआ था हिंदुओं का नरसंहारबलूचिस्‍तान में हिंदुओं पर जुल्‍म की दास्‍तां पुरानी है। यहां मार्च 2005 में सुरक्षा बलों ने हिंदुओं पर गोलियां चलाकर 33 हिंदुओं को मार दिया था। मरने वालों में अधिकांश महिलाएं और बच्चे थे। इसके बाद कई हजारों अल्पसंख्यकों ने अपने घर छोड़ दिए थे। और तो और, यह घटना पूरी तरह दबा गई। नरसंहार का खुलासा जनवरी 2006 में हुआ, जब पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग के प्रतिनिधि वहां पहुंचे। आयोग को स्थानीय निवासियों ने वीडियो टेप भी उपलब्ध कराए, जिसमें इस हत्याकांड के सबूत थे।
1947 में बंटवारे के वक्‍त बलूचिस्तान में हिंदू जनसंख्या 22 फीसदी थी, जो अब घटकर केवल 1.6 फीसदी रह गई है। अल्पसंख्यक आयोग की 2003 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार हिंदुओं के मुस्लिम बस्तियों से गुजरने पर आपत्ति व्यक्त की जाती है। हिंदू छात्राओं को जबरिया मुस्लिम बनाया जा रहा है। हिंदुओं के धर्मस्थल तोड़े जा रहे हैं। कुछ समय पहले तक हिंदू इस इलाके में आर्थिक रूप से काफी संपन्न होते थे, लेकिन मुस्लिम कट्टरपंथियों के कारण, अधिकांश अब यहां से जा चुके हैं। सरकारी नौकरियों में हिंदुओं की संख्या काफी कम है, लेकिन जो भी हैं, वे भी परेशान किए जा रहे हैं।
पाकिस्तान में हिंदू, सिख और ईसाई जैसे अल्पसंख्यक समुदायों के साथ बहुसंख्यक अच्छा बर्ताव नहीं करते हैं। कई हिंदू परिवारों को अपना पुश्तैनी घर छोड़ने और मंदिर को तोड़े जाने के फरमान जारी होते रहते हैं। पेशावर जैसे कई शहरों में ऐसे फरमान जारी हो चुके हैं। हिंदु लड़कियों का अपहरण करके उनके साथ जबर्दस्ती शादी करने और धर्म परिवर्तन की कई घटनाएं हो चुकी हैं। यही वजह है कि १९४८ में पाकिस्तान में जहां हिंदुओं की आबादी करीब १८ फीसदी थी, वही अब घटकर करीब दो फीसदी हो गई है।
पाकिस्तान में तालिबानी कट्टरपंथियों का कहर पिछले कुछ सालों से हिंदू परिवारों पर भी टूट रहा है। हिंदू परिवार की लड़कियों का अपहरण और उनका जबरन धर्म परिवर्तन अब आम बात हो गई है। सरकारी तंत्र ने भी कट्टरपंथियों के आगे घुटने टेक दिए हैं।
हजारों हिंदू खटखटा रहे भारत का दरवाजा 
एक आकलन के मुताबिक पिछले छह वर्षो में पाकिस्तान के करीब पांच हजार परिवार भारत पहुंच चुके हैं। इनमें से अधिकतर सिंध प्रांत के चावल निर्यातक हैं, जो अपना लाखों का कारोबार छोड़कर भारत पहुंचे हैं, ताकि उनके बच्चे सुरक्षित रह सकें।
2006 में पहली बार भारत-पाकिस्तान के बीच थार एक्सप्रेस की शुरुआत की गई थी। हफ्ते में एक बार चलनी वाली यह ट्रेन कराची से चलती है भारत में बाड़मेर के मुनाबाओ बॉर्डर से दाखिल होकर जोधपुर तक जाती है। पहले साल में 392 हिंदू इस ट्रेन के जरिए भारत आए। 2007 में यह आंकड़ा बढ़कर 880 हो गया। पिछले साल कुल 1240 पाकिस्तानी हिंदू भारत जबकि इस साल अगस्त तक एक हजार लोग भारत आए और वापस नहीं गए हैं। वह इस उम्मीद में यहां रह रहे हैं कि शायद उन्हें भारत की नागरिकता मिल जाए, इसलिए वह लगातार अपने वीजा की मियाद बढ़ा रहे हैं।
पाकिस्‍तान में हिंदू:-पाकिस्‍तान की आबादी का करीब 2.5 फीसदी हिस्‍सा यानी 26 लाख हिंदुओं का है।
हिंदू समुदाय करीब पूरे पाकिस्‍तान में फैला हुआ है और 95 फीसदी हिंदू सिंध प्रांत रहते हैं।
सिंध का थारपरकर जिला ही ऐसा है जहां हिंदू बहुमत (51 फीसदी) हैं। इस प्रांत के कुछ अन्‍य जिलों में भी हिंदुओं की आबाद है जिसमें मीरपुर खास (41 फीसदी), संगहार (35 फीसदी), उमरकोट (43 फीसदी)।
पाकिस्‍तान में रहने वाले हिंदुओं में करीब 82 फीसदी पिछड़ी जाति से संबंधित हैं। इनमें अधिकतर खेतीहर मजदूर हैं।
थारपरकर में हिंदुओं की अपनी जमीन भी है।
पाकिस्‍तान की नेशनल असेंबली में हिंदू सदस्‍य हैं- किशन भील, ज्ञान चंद और रमेश लाल।
कराची, हैदराबाद, जकोबाबाद, लाहौर, पेशावर और क्‍वेटा जैसे कुछ शहरों में भी हिंदुओं की आबादी रहती है।
फोटो कैप्‍शन: पाकिस्‍तान में उजाड़े गए हिंदुओं के घर की फाइल तस्‍वीर।
आपकी राय पाकिस्तान में लंबे समय से अल्पसंख्यकों के साथ ज्यादती की जा रही है। आखिर कौन है इसका जिम्मेदार? क्या पाकिस्तान सरकार अपना संवैधानिक दायित्व निभाने में सफल रही है? क्या भारत सरकार को इसमें हस्तक्षेप कर पाकिस्तान सरकार से बातचीत करना चाहिए? क्या भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह मामला उठाना चाहिए? क्या भारत सरकार को पाकिस्तान में सताए हुए अल्पसंख्यकों, जिनमें हिंदू और सिख दोनों शामिल हैं, को शरण देना चाहिए?  इन सभी मुद्दों पर आप भी दे सकते हैं अपनी राय। नीचे कमेंट बॉक्स में अपनी राय लिख कर सबमिट कर दुनिया भर के पाठकों से साझा कर सकते हैं।

शनिवार, 23 जुलाई 2011

Koi ilzam  lagakar to saja di hoti.Fir meri lach sare bazar jala di hoti.Itni nafrat thi to pyar se dekha hi kyu tha.Muze phle hi meri okat bata di hoti.Dekh kar zakham mere chura li aankhen tune.Puch kar kuch to zakhamo ki dawa di hoti.So jata me bhee chain se jana.Tune agar shok se anchal ki hawa di hoti.Zindgi apni bhee chein se gujar jani the.Tune agar pyar se dil me jagah di hoti.....RamdevSingh

मंगलवार, 19 जुलाई 2011

मंगल पाण्डे 1857 की क्रान्ति का प्रथम शहीद

                                               मंगल पाण्डे 1857 की क्रान्ति का प्रथम शहीद
कहा जाता है कि पूरे देश में एक ही दिन 31 मई 1857 को क्रान्ति आरम्भ करने का निश्चय किया गया था, पर 29 मार्च 1857 को बैरकपुर छावनी के सिपाही मंगल पाण्डे (19जुलाई 1827-8 अप्रैल 1857) की विद्रोह से उठी ज्वाला वक्त का इन्तजार नहीं कर सकी और प्रथमस्वाधीनता संग्राम का आगाज हो गया। मंगल पाण्डे को 1857 की क्रान्ति का पहला शहीद सिपाही माना जाता है। उत्तर प्रदेश राज्य के बलिया जिले के नगवा गांव में पैदा हुए इस भारतीय वीर के नाम युग-युगांतर तक आजादी की क्रांति का इतिहास देशभक्ति और हिम्मत की प्रेरणा देता रहेगा।
उनतीस मार्च 1857, दिन रविवार-उस दिन जनरल जान हियर्से अपने बंगले में आराम कर रहा था कि एक लेफ्टिनेंट बद्हवास सा दौड़ता हुआ आया और बोला कि देसी लाइन में दंगा हो गया है। खून से रंगे अपने घायल लेफ्टिनेंट की हालत देखकर जनरल जान हियर्से अपने दोनों बेटों को लेकर 34वीं देसी पैदल सेना की रेजीमेंट के परेड ग्राउण्ड की ओर दौड़ा। उधर धोती-जैकेट पहने 34वीं देसी पैदल सेना का जवान मंगलपाण्डे नंगे पांव ही एक भरी बन्दूक लेकर क्वाटर गार्ड के सामने बड़े ताव मे चहलकदमी कर रहा था और रह-रह कर अपने साथियों को ललकार रहा था-अरे! अब कब निकलोगे तुम लोग अभी तक तैयार क्यों नहीं हो रहे हो?ये अंग्रेज हमारा धर्म भ्रष्ट कर देंगे। आओ, सब मेरेपीछे आओ। हम इन्हें अभी खत्म कर देते हैं। लेकिन अफसोस किसी ने उसका साथ नहीं दिया, पर मंगल पाण्डे ने हार नहीं मानी और अकेले ही अंग्रेजी हुकूमत को ललकारता रहा। तभी अंग्रेज सार्जेंट मेजर जेम्स थार्नटन ह्यूसन ने मंगल पाण्डे को गिरफ्तार करने काआदेश दिया। यह सुन मंगल पाण्डे का खून खौल उठा और उसकी बन्दूक गरज़ने लगी। सार्जेंट मेजर ह्यूसन वहीं लुढ़क गया। अपने साथी की यह स्थिति देख घोडे़ पर सवार लेफ्टिनेंट एडजुटेंट बेम्पडे हेनरी वॉग मंगल पाण्डे की तरफ बढ़ता है, पर इससे पहले कि वह उसेकाबू कर पाता, मंगल पाण्डे ने उस पर गोली चला दी। दुर्भाग्य से गोली घोड़े को लगी और वॉग नीचे गिरते हुये फुर्ती से उठ खड़ा हुआ।
अब दोनों आमने-सामने थे। इस बीच मंगल पाण्डे ने अपनी तलवार निकाल ली और पलक झपकते ही वॉग के सीने और कन्धे को चीरते हुये निकल गई। तब तक जनरल जान हियर्से घोड़े पर सवार परेड ग्राउण्ड में पहुंचा औरयह दृश्य देखकर भौंचक्का रह गया। जनरल हियर्से ने जमादार ईश्वरी प्रसाद को हुक्म दिया कि मंगल पाण्डेको तुरन्त गिरफ्तार कर लो पर उसने ऐसा करने से मना कर दिया। तब जनरल हियर्से ने शेख पल्टू को मंगल पाण्डे को गिरफ्तार करने का हुक्म दिया। शेख पल्टू ने मंगल पाण्डे को पीछे से पकड़ लिया। स्थिति भयावह हो चली थी। मंगल पाण्डे ने गिरफ्तार होने से बेहतर मौत को गले लगाना उचित समझा और बन्दूक की नाल अपने सीने पर रख पैर के अंगूठे से फायर कर दिया।
लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था, सो मंगल पाण्डे सिर्फ घायल होकर ही रह गया। तुरन्त अंग्रेजी सेना ने उसे चारों तरफ से घेर कर बन्दी बना लिया और मंगल पाण्डे पर कोर्ट मार्शल का आदेश हुआ। अंग्रेजी हुकूमत ने 6 अप्रैल को फैसला सुनाया कि मंगल पाण्डे को 18 अप्रैल को फांसी पर चढ़ा दिया जाये। पर बाद में यह तारीख 8 अप्रैल कर दी गयी, ताकि विद्रोह की आगअन्य रेजिमेण्टो में भी न फैल जाये। मंगल पाण्डे के प्रति लोगों में इतना सम्मान पैदा हो गया था कि बैरकपुर का कोई जल्लाद फांसी देने को तैयार नहीं हुआ। नतीजन कलकत्ता से चार जल्लाद बुलाकर मंगल पाण्डे को 8 अप्रैल, 1857 को फांसी पर चढ़ा दिया गया। मंगल पाण्डे को फांसी पर चढ़ाकर अंग्रेजी हुकूमत ने जिस विद्रोह की चिंगारी को खत्म करना चाहा, वह तो फैल ही चुकी थी और देखते ही देखते इसने पूरे देश को अपने आगोश में ले लिया। ओर इस तरह मंगल पाण्डे आजादी का प्रथम शहीद कहलाया।....

शुक्रवार, 8 जुलाई 2011

चौमासै री बिरखा रा रंग न्यारा


चौमासै री बिरखा रा रंग न्यारा । तपती गरमी अर फंफेड़ण आळी लू । इण रै बिच्चै छांटां रो छमको । सुक्की धरती । कळझळता रूंखड़ा । लटपटाईजता घास अर बांठका । तिरस साम्भ भटकता डांगर । पाणी पाणी करता पिराण छोडता पंखेरु । रुंआंड़ी उपाड़तो किरसो । मुरधर मेँ मोरां रै कंठां में टसकता बिरखा रा गीत । डेडरां रै ताळवै चिपती जीभ । काछबां रा पग पिंड मेँ कैद ।... चौगड़दै हाहाकार । आस कै होसी कदै ई तो जळजळाकार । च्यारुं कूंट बिरखा री चावना-ध्यावना । क्या कैवणां है ऐड़ी चाईजती घड़ी मेँ बिरखा रा ।

मुरधर मेँ बिरखा री पैली ई छांट री रंगत निरवाळी । बिरखा रा अणूंता कोड । मोरिया नाचण ढूकै । डेडर कंठ सम्भाळै अर लाम्बी तान टेरै । काछबा देखै जळव्हाळा । रूंखड़ा लैरिया करै । बांठका-झाड़का पान सोधै । सीवण, धामण,बूर, भुरट, मुरट , खीँप,बूई सिणियां अर डचाब पसवाड़ो फोरै । रोई आप रा हरियल गाभा अंवेरै । किरसो हळ पंजाळी सीध मेँ करै । धरती पेट पड़िया बीज उजाळै । चौमासो मुरधर मेँ उच्छब रै उनमान । चौगड़दै पाणी रा गुणगाण । बिरखा रा नाप आंगळ्यां माथै । अर आंगळ्यां खेत खानीं । खेत मेँ चिग बापरै तो डांगरां रा मन उडारु ।

खेतीखड़ आपरै धंधै । टाबरिया रम्मतां मेँ । रम्मत मेँ माटी रा घर । छोरयां हींडा री होड मेँ । लुगायां तीजां री त्यारयां मेँ । नूंईँ बीनण्यां तकावै पीवरिया । नूंआं परणीज्या मोट्यार पैलै सावण धण अळगाव मेँ बटबटीजै । खेतां मेँ लुगायां भेळी होवै । साथै रैवै जोधजुआन छोरयां-छापरयां-बीनण्यां । खेत मेँ रूंखां रै ऊंचा लाम्बा डाळां माथै घलै हींडा । पकै पकवान । पकोड़ा । चीलड़ा । चूरमां । गुलगुला । मालपूआ । पुड़ा । पछै हीँडीजै हींडा । लाम्बी लाम्बी ऊबल्यां मचकाईजै । ऊबली ऐकल अर जोड़ै सूं । ताळी । नाच । हंसी । ठठ्ठा । गीत । किलोळ । इण सब मेँ छूटै हांफड़ा । भळै थक हार बनभोजन नै ढूकै । सगळी भेळी जीम्मै । जीम जूठ घरां आवै । खेत बणाई चीजां घर रै बाकी लोगां मेँ बंटै । घर रा सगळा कोड सूं जीम्मै । छेकड़ सगळी थक हार सोवै ।

बिरखा मेँ तळाब , कुंड, बावड़ी आद स्सै भरीजै । लबालब । मोट्यार आं मेँ न्हावण ढूकै । गंठा बीड़ै । चुभ्यां लगावै । पाणीँ मेँ ऊंदा सूआं तिरै । गंठा बीड़णोँ ऐक कळा । हरेक नीँ बीड़ सकै गंठो । गंठो, ऊंची जाग्यां सूं पाणी मेँ कूदण री ऐक कळा । ऐक पग सीधो अर दूजै पग रो पंजो पैलड़ै पग रै गोडै माथै । तीखो रूप । सीधो पाणीं मेँ-देड़ेंदा । हब्बीड़ ऊपडै़ । पाणीं में जळेबी बणै । अर सगळा ताळी देंवता बोलै-फलाणैं जबरो गंठो बीड़ियो ! तळाब रै किनारै बिजिया[ भांग ] घोटीजै ! सगळा मिल भांग पीवै ! भांग पीयां पछै न्हावण री ऐक झुट्टी भळै लागै । न्हावंतां-न्हावंतां भांग असर सरू करै । भोख बधै !

न्हावण रै बाद तळाब माथै ई गोठ होवै । सीरा-पूड़ी, दाळ-बाटी-चूरमो अर पकोडा़ बणै ! मोगरी रो चूरमो भांग रै नसै में दूभर्या लगावै । बीकानेर रै हंसोळाव,संसोळाव,हरषोळाव,कोलायत​ अर सागर रै तळाबां माथै आं दिनां गोठां रा दौर चालै । बजरंग धोरै माथै भी रंग जमै । जोधपुर, उदयपुर,जैसलमेर,बाड़मेर,कोटा,बू​ंदी री तो गोठां नामी है । देस दिसावर गया लोग आं गोठां रा सुख लूंटण सारू पाछा आवै ! मुरधर में गोठां री मै’मा निरवाळी !

बुधवार, 6 जुलाई 2011

मौत के बाद की दुनिया कैसी है।


यह एक रहस्य ही है कि मौत के बाद की दुनिया कैसी है। शरीर छोडऩे के बाद आत्मा कहां जाती है और क्या इस दुनिया के अलावा भी कोई दुनिया है जहां इंसान को मृत्यु के बाद कर्मफल भोगने पड़ते हैं। किस्से कहानियों में नर्क की यातनाएं और स्वर्ग के सुखों के बारे में जो सुना है वह कितना सच है।

गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि आत्मा की यात्रा अनंत है और यह शरीर केवल इसके लिए एक साधन है। बिलकुल कपड़े की तरह। आत्मा जब एक शरीर छोड़ती है, तो फिर कहीं ओर वह दूसरा शरीर भी धारण करती है। ये बात भलीभांति सुनी और समझी हुई है लेकिन एक शरीर से दूसरे शरीर तक की यात्रा में आत्मा को किन-किन घटनाओं से गुजरना पड़ता है, यह सबसे अधिक रोमांच और जिज्ञासा का विषय है।

हिंदू धर्म ग्रंथों में आत्मा की अनंत यात्रा का विवरण कई तरह से मिलता है। भागवत पुराण, महाभारत, गरूड़ पुराण, कठोपनिषद, विष्णु पुराण,  अग्रिपुराण जैसे ग्रंथों में इन बातों का बहुत जानकारी परक विवरण मिलता है।



मौत के क्षण : क्या होता है जब आत्मा शरीर को छोड़ती है गरूड़ पुराण कहता है कि जब आत्मा शरीर छोड़ती है तो उसे दो यमदूत लेने आते हैं। जैसे हमारे कर्म होते हैं उसी तरह वो हमें ले जाते हैं। अगर मरने वाला सज्जन है, पुण्यात्मा है तो उसके प्राण निकलने में कोई पीड़ा नहीं होती है लेकिन अगर वो दुराचारी या पापी हो तो उसे बहुत तरह से पीड़ा सहनी पड़ती है। पुण्यात्मा को सम्मान से और दुरात्मा को दंड देते हुए ले जाया जाता है। गरूड़ पुराण में यह उल्लेख भी मिलता है कि मृत्यु के बाद आत्मा को यमदूत केवल 24 घंटों के लिए ही ले जाते हैं।

इन 24 घंटों में उसे पूरे जन्म की घटनाओं में ले जाया जाता है। उसे दिखाया जाता है कि उसने कितने पाप और कितने पुण्य किए हैं। इसके बाद आत्मा को फिर उसी घर में छोड़ दिया जाता है जहां उसने शरीर का त्याग किया था। इसके बाद 13 दिन के उत्तर कार्यों तक वह वहीं रहता है। 13 दिन बाद वह फिर यमलोक की यात्रा करता है।



आत्मा की गतियां
वेदों, गरूड़ पुराण और कुछ उपनिषदों के अनुसार मृत्यु के बाद आत्मा की आठ तरह की दशा होती है, जिसे गति भी कहते हैं। इसे मूलत: दो भागों में बांटा जाता है पहला अगति और दूसरा गति। अगति में व्यक्ति को मोक्ष नहीं मिलता है उसे फिर से जन्म लेना पड़ता है। गति में जीव को किसी लोक में जाना पड़ता है।

अगति के चार प्रकार हैं क्षिणोदर्क, भूमोदर्क, तृतीय अगति और चतुर्थ अगति। क्षिणोदर्क अगति में जीव पुन: पुण्यात्मा के रूप में मृत्यु लोक में आता है और संतों सा जीवन जीता है, भूमोदर्क में वह सुखी और ऐश्वर्यशाली जीवन पाता है, तृतीय अगति में नीच या पशु जीवन और चतुर्थ गति में वह कीट, कीड़ों जैसा जीवन पाता है। वहीं गति के अंतर्गत चार लोक दिए गए हैं और जीव अपने कर्मों के अनुसार गति के चार लोकों ब्रह्मलोक, देवलोक, पितृ लोक और नर्क लोक में स्थान पाता है।



आत्मा का मार्ग
आत्मा की यात्रा का मार्ग पुराणों में आत्मा की यात्रा के तीन मार्ग माने गए हैं। जब भी कोई मनुष्य मरता है और आत्मा शरीर को त्याग कर उत्तर कार्यों के बाद यात्रा प्रारंभ करती है तो उसे तीन मार्ग मिलते हैं। उसके कर्मों के अनुसार उसे कोई एक मार्ग यात्रा के लिए दिया जाता है।

ये तीन मार्ग है अर्चि मार्ग, धूम मार्ग और उत्पत्ति-विनाश मार्ग। अर्चि मार्ग ब्रह्मलोक और देवलोक की यात्रा के लिए है। धूममार्ग पितृलोक की यात्रा के लिए है और उत्पत्ति-विनाश मार्ग नर्क की यात्रा के लिए है।



कितने तरह के होते हैं नर्क
मुख्य नरक 36 हैं। उनमें भी अवीचि, कुम्भीपाक और महारौरव ये तीन मुख्यतम हैं। ये तीनों नरक समस्त नरकों या नरक लोक के अध: मध्य और ऊध्र्व भाग में स्थित हैं। 36 नरकों में से एक-एक के चार-चार उप नरक हैं। 

सीख लें 7 अंकों का यह जादू..! जीवनभर पाएंगे भरपूर सुख

व्यावहारिक जीवन में बुद्धिमान होने के बावजूद भी इंसान पशुवत व्यवहार करते देखा जाता है, किंतु पशुओं के स्वाभाविक खान-पान, दिनचर्या या जीवनशैली में बदलाव नहीं होता। यही कारण है कि बुद्धि को इंसान और पशु के बीच सबसे बड़ा फर्क भी माना जाता है। दरअसल, इस बात से यह भी साफ है कि बुद्धि का उपयोग ही अच्छे-बुरे कर्मों द्वारा इंसान के सुख-दु:ख नियत करता है।

बुद्धि ईश्वर की वह देन है, जो हर इंसान को प्राप्त होती है। किंतु धर्मशास्त्रों के मुताबिक इस बुद्धि का पोषण ज्ञान के साथ अनुभव और व्यवहार द्वारा भी होता है। ज्ञान, पुण्य कर्म और विचार बुद्धि को धार देते हैं। वहीं ज्ञान का अभाव, बुरे या पाप कर्मो से बुद्धि का नाश होता है।

हिन्दू धर्मशास्त्र महाभारत में सुखी जीवन के लिये ही बुद्धि के सही उपयोग से सुख की मंजिल तय करने के लिये ऐसा अंक गणित भी बताया गया है, जिसे सीखकर हर इंसान सांसारिक जीवन के संघर्ष में सफलता पा सकता है।

लिखा गया है कि -

एकया द्वे विनिनिश्चित्य त्रींश्चतुर्भिवशे कुरु।

पञ्च जित्वा विदित्वा षट् सप्त हित्वा सुखो भव।।

इस श्लोक में जीवन में कर्म, व्यवहार और नीति में बुद्धि के उपयोग द्वारा सुख बंटोरने के लिये 1 से लेकर 7 अलग-अलग सूत्रों को उजागर किया गया है। सरल शब्दों में जानते हैं यह अंक गणित -

एक यानी बुद्धि से दो यानी कर्तव्य और अकर्तव्य का निर्णय कर चार यानी साम, दाम, दण्ड, भेद द्वारा तीन यानी दुश्मन, दोस्त और तटस्थ को काबू में करें।

इनके साथ-साथ पांच यानी पांच इन्द्रियों के संयम द्वारा छ: यानी छ: नीतियों सन्धि- मेलजोल या मित्रता, विग्रह - संधि विच्छेद या मित्रता के रिश्ते न रखना, यान - सही मौके पर वार, आसन - विपरीत हालात में शांत रहना, द्वैधीभाव - ऊपर से मित्रता अंदर से शत्रुता का भाव और समाश्रय - सक्षम व सबल की पनाह लेना, समझें और जानें।

साथ ही सात यानी स्त्री, जूआ, मृगया यानी शिकार, नशा, कटु वचन, कठोर दण्ड और गलत तरीके से धन कमाने के बुरे गुण और कर्म को छोडऩा कठिन और विरोधी स्थितियों में किसी भी इंसान के लिये सुख का कारण बन जाते हैं।

अगर आपकी धर्म और उपासना से जुड़ी कोई जिज्ञासा हो या कोई जानकारी चाहते हैं तो इस आर्टिकल पर टिप्पणी के साथ नीचे कमेंट बाक्स के जरिए हमें भेजें।

इस ताकत से पाया जा सकता है भगवान को....

हर तरह से बलशाली बनने के इस समय में बाहुबल, धनबल, जनबल इन्हें भौतिक तौर-तरीकों से पाया जा सकता है। यह कोई बहुत कठिन काम नहीं होता। यह सब तो रावण के पास भी था, क्योंकि उसने अर्जित किया था। लेकिन आत्मबल की कमी उसमें भी थी और आज भी कई लोगों में रहती है।

लगातार प्रयास करते रहिए कि बाहर से सब तरह से सक्षम होने के साथ हम आत्मबली भी हों। इसकी शुरूआत आत्मज्ञान से होती है। आत्मज्ञान का अर्थ है स्वयं को जानना। अपने को जानने की पहली सीढ़ी है हम भीतर से क्या हैं? या यूं कहें हमारे भीतर हमारे अलावा और कौन रहता है?

जैसे ही इस सवाल के जवाब में हम थोड़ा गहरे उतरेंगे तभी हमें अनुभूति होगी हमारे भीतर परमात्मा रहता है और जितने उसके निकट जाएंगे उतना ही हम यह अधिक महसूस करेंगे कि हम ही परमात्मा हैं। हमारे भीतर रहकर ईश्वर ने हमें अपने जैसा बनाया है, लेकिन संभावना छोड़ दी है कि हम पहचानें या न पहचानें। हम भगवान की शानदार कृति हैं और वे हमारे भीतर बसे ही हैं।

इस अनुभव को बढ़ाने के लिए एक प्रयोग करें। जब भी हम कोई काम करें इस बात का दबाव स्वयं पर बनाएं कि हमारा हर कृत्य हमारी भगवत्ता को जरूर स्पर्श करे। यदि हम कुछ गलत कर रहे हैं तो हमारी भगवत्ता उससे अछूति नहीं है। फिर विचार करें परमात्मा अनुचित नहीं करता। चूंकि हम उससे कट गए हैं इसलिए जीवन में गलत शुरू हो गया है।

जैसे ही हम भीतर उससे जुड़ेंगे अनुचित अपने आप उचित में बदलने लगेगा। भीतर भगवान से जुडऩा ही आत्मबल है। कोई है जो हमसे सीधे-सीधे जुड़ा है। भीतर से उनका साथ होना बाहर हमारे व्यक्तित्व को ओज और तेजमय बना देगा। भीतर उतरने की शुरूआत करने के लिए सरल उपाय है जरा मुस्कराइए...

इसलिए बस मेरे शहर चली आई


उस स्टेशन पर तुम बदहवास सी दौड़ रही थी
गाड़ी तो आई नहीं थी ,पर तुम घबरा रही थी
कुछ इसे ही पलो मे टकराई थी तुम मुझ से
फिर सिलसिला शुरू हुआ मुलाकातों का
ना तुम थी मेरे शहर की, ना मै था तुम्हारे शहर का
मै अपना हक़ किसी और को दे चूका था
और तुम पर हक़ किसी और का था
ना जाने क्यों फिर भी ये दूरियां सिमटने लगी
मै तुमको समझ गया तुम मुझे समझने लगी
एक दूजे की आदत हो गए थे हम
और फिर ना जाने क्यों ये नजदीकियां चुभने लगी
नम आँखों से तुम मुस्कुराती हुई मुड गई थी
तुम ये ना समझना की मैने साथ छोड़ दिया था तुम्हारा
मै बस कुछ कदम पीछे हट गया था
...................................................
आज अरसे बाद तुम फिर मुझे मेरे शहर में क्यों दिख गई
मै बस लिपटना चाहता था एक बार तुमसे
तभी तुम्हारे होंठो ने बुदबुदाया , तुमको मुझ से कुछ काम था
एक बार झूठ ही सही कह देती ,की रह नहीं पाई बिन मेरे
इसलिए बस मेरे शहर चली आई

अिनवंश

सिर्फ 6 आदतें और बदल जाएगी आपकी जिंदगी

 
रोजमर्रा की आदतें वास्तव में आपको स्वस्थ रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। आइए जानते हैं कि आपकी क्या आदतें हैं और उनके मुताबिक आपको किन स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं का खतरा हो सकता है और उनसे बचाव के बारे में...

बैली सपाट है

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑन एजिंग स्टडी से पता चलता है कि जिन महिलाओं की कमर पर ज्यादा चर्बी जमी होती है, उनकी आयु कम होने की संभावना 20 फीसदी अधिक होती है। खासतौर पर मेनोपॉज के बाद महिलाओं को पेट सपाट ही रखना चाहिए। विशेषज्ञ कहते हैं कि हार्मोनल बदलाव के चलते अतिरिक्त वजन पेट के इर्द-गिर्द ही एडजस्ट होता है। यदि आपकी कमर 35 इंच या इससे ज्यादा है तो ये करें।

- 20 मिनट की स्ट्रेंथ ट्रेनिंग दो या तीन बार करें।

- ओमेगा-3 फैटी एसिड के लिए अखरोट, अलसी या मछली और ताजे फल/सब्जियों का सेवन करें।

- 25 फीसदी मोनोसैचुरेटेड फैटी एसिड भोजन में शामिल करें।

टीनएज में हेल्दी रहें
जर्नल ऑफ पीडियाट्रिक्स के अध्ययन में जन्म से 25 वर्ष की उम्र के करीब 137 अफ्रीकन अमेरिकंस पर किए शोध में पाया गया कि किशोरावस्था में जिनका वजन अनियंत्रित था, उन्हें टाइप 2 डायबिटीज होने की आशंका अधिक होती है। अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के अनुसार डायबिटीज के मरीजों के हृदय रोगों से पीड़ित होने की आशंका अन्य लोगों की तुलना में दो से चार गुना अधिक होती है।

जामुनी फूड पंसद है
जो लोग जामुनी रंग के ही फल जैसे ब्ल्यूबैरीज या काले अंगूर खाना पसंद करते हैं, उन्हें हृदयरोग व अल्जाइमर जैसी बीमारियां कम घेरती हैं। इन फलों में पॉलिफिनॉल नामक तत्व पाया जाता है, जो रक्त वाहिकाओं और आर्टरीज का लचीलापन बढ़ाता है। साथ ही मस्तिष्क की रक्त वाहिकाओं को भी स्वस्थ रखता है। यूनिवर्सिटी ऑफ सिनसिनाटी के कॉन्गनिटिव डिसऑर्डर सेंटर के निदेशक रॉबर्ट क्रिकोरियान कहते हैं कि नियमित रूप से इन फलों का एक कप सेवन करने से याद्दाश्त तेज होती है।

काम खुद ही करते हैं
70 से 80 वर्ष के करीब 302 बुजुर्गो पर किए गए शोध से सामने आया कि जो लोग अपने घरेलू काम जैसे घर की साफ-सफाई या कपड़े धोने जैसे काम दूसरों से न करवाकर खुद ही करते हैं, उनकी जल्दी मृत्यु की आशंका करीब 30 फीसदी तक कम हो जाती है।

सामाजिक जीवन जीते हैं
स्वीडन स्थित कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं के अनुसार जो लोग सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय रहते हैं, उन्हें भूलने की बीमारी यानी डिमेंशिया होने का खतरा कम होता है। वहीं ऐसे लोग तनावग्रस्त भी कम होते हैं। यह अध्ययन 78 वर्ष से अधिक करीब 500 पुरुषों और महिलाओं पर किया गया था।

बन-ठनकर रहते हैं
अमेरिकन साइकोलॉजिस्ट के एक अध्ययन में पाया गया है कि जो लोग अपने लुक्स को लेकर बहुत सजग रहते हैं, वे तनावग्रस्त कम होते हैं। एमॉरी यूनिवर्सिटी में साइकोलॉजी के प्रोफेसर कोरे कीयेस कहते हैं कि जो लोग अपने व्यक्तित्व से खुश नहीं होते हैं या घर-परिवार की जिम्मेदारी निभाने के चक्कर में खुद को समय नहीं दे पाते हैं, वे अकसर किसी न किसी तनाव से घिरे ही रहते हैं। इससे बचना चाहिए।

रोज पीते-पीते पक्का बेवड़ा बन गया यह 'घोड़ा'

 
लंदन।वैसे तो आपने बहुत से महंगे और विलायती या उम्दा किस्म के जानवरों के बारे में सुना होगा लेकिन हम जिस जानवर के बारे में आपको बताने जा रहे हैं वह इन सबसे थोड़ा हट कर है.
ब्रिटेन के पश्चिमी मिडलैंड के शहर स्टेफोर्डशायर के एक पब में आपको इस जानवर के अनोखे व्यवहार के दर्शन भी हो सकते हैं. दरअसल, बेसिल नाम का यह घोड़ा शराब पीने का शौकीन है। अपने इस शौक को पूरा करने के लिए वह हर रविवार को नियमित तौर पर पब जाता है और वहां अपने इस शौक को पूरा करता है. यहाँ उसे उसका पसंदीदा शराब मार्सन्स पैडीग्री परोसा जाता है.
पब के मैनेजर गे वैलिस ने बताया, बेसिल हमारे यहां कई साल से शराब पीने आ रहा है। वो स्वभाव से बहुत शांत है। उसे खास गिलास में शराब परोसी जाती है। उसे पीते देखकर लगता है जैसे थकान उतारने के लिए वो शराब पीने का शौक रखता है। पब में मौजूद अन्य लोगों को भी उसका साथ देने में बहुत मजा आता है। ये लोग बेसिल को देखकर चौंकते नहीं है क्योंकि बाकी लोगों की तरह वो भी यहां का नियमित ग्राहक है।
मैनेजर ने बताया, नौ साल के बेसिल का मालिक यहां पिछले दस साल से आ रहा है और वो अपने घोड़े को भी अंदर लाने की कोशिश करता था। फिर हमने भी उसे बेसिल को अंदर लाने की इजाजत दे दी। अब वो अपने मालिक के साथ पिछले कुछ साल से लगातार पब में आ रहा है। हम उसे शराब के साथ खाने के लिए कुछ सब्जियां भी देते हैं। बेसिल के मालिक विलनेस ने बताया, एक बार जब मैं शराब पी रहा था तो बेसिल ने उसे पीने की कोशिश की। मैंने उसे भी उसका स्वाद चखा दिया। उसके बाद जब उसे भी पीने का चस्का लग गया। हालांकि हम उसे सीमित मात्रा में ही शराब देते हैं।

तीन बातें

तीन बातें चरित्र को गिरा देती हैं - चोरी, निंदा और झूठ।


तीन चीज़ों को कभी छोटा मत समझो - कर्जा, दुश्मन और बीमारी।
...


तीन चीज़ें हमेशा पर्दा चाहती हैं - दौलत, खाना और शरीर।


तीन चीज़ें हमेशा दिल में रखनी चाहिए - नम्रता, दया और माफ़ी।


तीन चीज़ें कोई चुरा नहीं सकता - अक्ल, हुनर और शिक्षा।


तीन चीज़ों पर कब्ज़ा करो - ज़बान, आदत और गुस्सा।


तीन चीज़ों से दूर भागो - आलस्य, खुशामद और बकवास।


तीन चीज़ों के लिए मर मिटो - धेर्य, देश और मित्र।


तीन बातें कभी मत भूलें - उपकार, उपदेश और उदारता। ....

चाँद अपना सफ़र ख़तम करता रहा


चाँद अपना सफ़र ख़तम करता रहा,
रात भर आसमान यूं पिघलता रहा, 
दिलों में याद का नश्तर चुभते रहे,
दर्द बन कर शमां दिल में जलता रहा,
...
वो जो दिल से हमें भुलाये बैठे थे,
दिल उनसे मिलने को मचलता रहा,
आंसू पलकों से ना छलका कभी,
दर्द वो चुपके से दिल में पलता रहा,
रोज़ आ कर शबनम रोती रही रात भर,
                                      मेरी तन्हाइयों का सफ़र यूं ही चलता रहा

मंगलवार, 5 जुलाई 2011

जद तू मिलसी बेलिया करस्यूँ मन री बात ।

जद तू मिलसी बेलिया करस्यूँ मन री बात ।
बध बध देस्यू ओळमा भर भर रोस्यूँ बाँथ ॥


चैत ...
चुरावै चित्त नै चित्त आयो चित्तचोर ।
गौर बणाती गौरडी खुद बणगी गणगौर

बेली तरसै गांव मँ मन मँ तरसै हेत ।
घिर घिर तरसै एकली सेजाँ मँ परणेत ॥

भाँत भाँत री बात है बात बात दुभाँत ।
परदेशाँ रा लोगडा ज्यूँ हाथी रा दांत ॥


बडा बडेरा कैंवता पंडित और पिरोत।
बडै भाग और पुन्न सूँ मिलै गांव री मौत ।|

लोग चौकसी राखता खुद बांका सिरदार ।
बांकडला परदेस मँ बणग्या चौकीदार ॥

मरती बेळ्या आदमी रटै राम र्रो नांव ।
म्हारी सांसा साथ ही चित्त सू जासी गांव ॥

मै परदेशी दरद हूँ तू गांवा री मौज ।
मै हू सूरज जेठ रो तूँ धरती आसोज॥

बेमाता रा आंकङा मेट्या मिटे नै एक ।
गूंगै री ज्यू गांव रा दिन भर सुपना देख ॥


मायड रोयी रात भर रह्यो खांसतो बाप ।
जिण घर रो बारणो मै छोड्यो चुपचाप ॥



कुण चुपकै सी कान मै कग्यो मन री बात ।
रात हमेशा आवती रात नै आयी रात ॥


दोरा सोराँ दिन ढल्यो जपताँ थारो नाम ।
च्यार पहर री रात आ कीयाँ ढळसी राम ॥


प्रीत करी गैला हुया लाजाँ तोङी पाळ ।
दिन भर चुगिया चिरडा रात्यु काढी गाळ ॥

पाती लिखदे डाकिया लिखदे सात सलाम ।
उपर लिख दे पीव रो नीचै म्हारो नांम ॥

दीप जळास्यु हेत रा दीवाळी रो नाम ।
इण कातिक तो आ घराँ ओ ! परदेसी राम ॥

जोबण घेर घुमेर है निरखै सारो गांव ।
म्हारै होठाँ आयग्यो परदेसी रो नांव ॥

जीव जळावै डाकियो बांटै घर घर डाक ।
म्हारै घर रै आंगणै कदै न देख झांक ॥

मैडी उभी कामणी कामणगारो फाग ।
उडतो सो मन प्रीत रो रोज उडावै काग ॥

बागाँ कोयल गांवती खेता गाता मोर ।
जब अम्बर मँ बादळी घिरता लोराँ लोर ॥

बाबल रै घर खेलती दरद न जाण्यो कोय ।
साजन थारै आंगणै उमर बिताई रोय ॥

बाबल सूंपी गाय ज्यूँ परदेसी रै लार ।
मार एक बर ज्यान सूँ तडपाके मत मार ॥

नणद,जिठाणी,जेठसा दयोराणी अर सास ।
सगलाँ रै रैताँ थका थाँ बिन घणी उदास


खाणो पीणो बैठणो घडी नही बिसराम ।
बो जावै परदेस मँ जिण रो रूसै राम ||

सोमवार, 4 जुलाई 2011

कैसे लोगों के पास नहीं ठहरतीं देवी लक्ष्मी?

तार्किक होना या बुद्धिमान होना कोई बुरी बात नहीं है। इंसान को वही बात स्वीकारनी चाहिए, जो तर्क की कसौटी पर खरी उतरे या जिसे बुद्धि स्वीकार करे। किंतु तर्क और बुद्धि की भी अपनी सीमा होती है। देवी-देवताओं के विषय में भी लोगों की ऐसी ही दुविधा है। गणेश की सवारी चूहा हो या लक्ष्मी का वाहन उल्लू, इसपर सहसा कोई विश्वास नहीं करता। यहां तक कि देवी-देवताओं के अस्तित्व पर भी शंका-संदेह किया जाता है। जबकि वास्तविकता यह है कि देवी-देवताओं के जो चित्र बनाए गए हैं वे प्रतीकात्मक हैं, जो कि उनके गुणों को व्यक्त करने का जरिया या संकेत होते हैं।

उल्लू पर सवार लक्ष्मी-लक्ष्मी का वाहन उल्लू माना जाता है जो कि रात यानि अंधेरे का निवासी है। अंधेरा सदैव असत्यता और अज्ञानता को जन्म देता है। यहां उल्लू मूर्ख इंसान का प्रतीक है। उल्लू पर सवार लक्ष्मी अत्यंत चंचल मानी गई है। चंचल यानि कि जो एक जगह स्थिह ना रहे। मतलब यह हुआ कि, उल्लू जैसे अज्ञानी व्यक्ति के पास यदि किसी तरह की किस्मत या संयोग से लक्ष्मी आ भी गई तो वह टिकेगी नहीं। वह जैसे अचानक आई है वैसे ही चली भी जाएगी।

विष्णु प्रिया लक्ष्मी-जबकि मेहनती, ईमानदार और सच्चा इंसान वो समझदारी प्राप्त कर लेता है, जिससे देवी लक्ष्मी उसको छोड़कर नहीं जाती। ज्ञानी के पास जो लक्ष्मी आती है वह उल्लू पर सवार होकर नहीं बल्कि भगवान विष्णु के साथ गरुड़ पर सवार होकर आती है। जहां सत्य और ज्ञान है वहां विष्णु है, जहां विष्णु हैं वहां उनकी चिरप्रिया लक्ष्मी स्थाई निवास करती है।





कैसे लोगों के पास नहीं ठहरतीं देवी लक्ष्मी?

तार्किक होना या बुद्धिमान होना कोई बुरी बात नहीं है। इंसान को वही बात स्वीकारनी चाहिए, जो तर्क की कसौटी पर खरी उतरे या जिसे बुद्धि स्वीकार करे। किंतु तर्क और बुद्धि की भी अपनी सीमा होती है। देवी-देवताओं के विषय में भी लोगों की ऐसी ही दुविधा है। गणेश की सवारी चूहा हो या लक्ष्मी का वाहन उल्लू, इसपर सहसा कोई विश्वास नहीं करता। यहां तक कि देवी-देवताओं के अस्तित्व पर भी शंका-संदेह किया जाता है। जबकि वास्तविकता यह है कि देवी-देवताओं के जो चित्र बनाए गए हैं वे प्रतीकात्मक हैं, जो कि उनके गुणों को व्यक्त करने का जरिया या संकेत होते हैं।

उल्लू पर सवार लक्ष्मी-लक्ष्मी का वाहन उल्लू माना जाता है जो कि रात यानि अंधेरे का निवासी है। अंधेरा सदैव असत्यता और अज्ञानता को जन्म देता है। यहां उल्लू मूर्ख इंसान का प्रतीक है। उल्लू पर सवार लक्ष्मी अत्यंत चंचल मानी गई है। चंचल यानि कि जो एक जगह स्थिह ना रहे। मतलब यह हुआ कि, उल्लू जैसे अज्ञानी व्यक्ति के पास यदि किसी तरह की किस्मत या संयोग से लक्ष्मी आ भी गई तो वह टिकेगी नहीं। वह जैसे अचानक आई है वैसे ही चली भी जाएगी।

विष्णु प्रिया लक्ष्मी-जबकि मेहनती, ईमानदार और सच्चा इंसान वो समझदारी प्राप्त कर लेता है, जिससे देवी लक्ष्मी उसको छोड़कर नहीं जाती। ज्ञानी के पास जो लक्ष्मी आती है वह उल्लू पर सवार होकर नहीं बल्कि भगवान विष्णु के साथ गरुड़ पर सवार होकर आती है। जहां सत्य और ज्ञान है वहां विष्णु है, जहां विष्णु हैं वहां उनकी चिरप्रिया लक्ष्मी स्थाई निवास करती है।

रविवार, 3 जुलाई 2011

उजळी और जेठवै की प्रेम कहानी और उजळी द्वारा बनाये विरह के दोहे

उजळी और जेठवै की प्रेम कहानी और उजळी द्वारा बनाये विरह के दोहे

करीब ११ वीं-१२ वीं शताब्दी में हालामण रियासत की धूमली नामक नगरी का राजा भाण जेठवा था | उसके राज्य में एक अमरा नाम का गरीब चारण निवास करता था | अमरा के एक २० वर्षीय उजळी नाम की अविवाहित कन्या थी | उस ज़माने में लड़कियों की कम उम्र में ही शादी करदी जाती थी पर किसी कारण वश उजळी २० वर्ष की आयु तक कुंवारी ही थी |

अकस्मात एक दिन उसका राजा भाण जेठवा के पुत्र मेहा जेठवा से सामना हुआ और पहली मुलाकात में ही दोनों के बीच प्रेम सम्बन्ध स्थापित हो गए जो दिनों दिन दृढ होते गए | दोनों के विवाह की वार्ता चलने पर मेहा जेठवा ने उजळी से शादी करने के लिए यह कह कर मना कर दिया कि चारण व राजपूत जाति में भाई- भाई का सम्बन्ध होता है इसलिए वह उजळी से विवाह कर उस मर्यादा को नहीं तोड़ सकता | हालाँकि उजळी के पिता आदि सभी ने शादी के सहमती दे दी थी | पर जेठवा के हृदय में मर्यादा प्रेम से बढ़ी हुई थी इसलिए उसे कोई नहीं डिगा सका , पर जेठवा के इस निर्णय से उजळी का जीवन तो शून्य हो गया था |

कुछ दिनों के बाद मेहा जेठवा की किसी कारण वश मृत्यु हो गई तो उजळी की रही सही आशा का भी अंत हो गया | उजळी ने अपने हृदय में प्रेम की उस विकल अग्नि को दबा तो लिया पर वह दबी हुई अग्नि उसकी जबान से सोरठो (दोहों) के रूप में प्रस्फुटित हुई | उजळी ने अपने पुरे जीवन में जेठवा के प्रति प्रेम व उसके विरह को सोरठे बनाकर अभिव्यक्त किया | इस सोरठों में उजळी के विकल प्रेम, विरह और करुणोत्पादक जीवन की हृदय स्पर्शी आहें छिपी है |
मेहा जेठवै की मृत्य के बाद अकेली विरह की अग्नि में तप्ति उजळी ने उसकी याद में जो सोरठे बनाये उन्हें हम
मरसिया यानी पीछोले भी कह सकते है |

उदहारण व आपके रसास्वाद हेतु कुछ उजळी के बनाये कुछ पीछोले (दोहे) यहाँ प्रस्तुत है | इन दोहों का हिंदी अनुवाद व उन पर टिका टिप्पणी
स्व.तनसिंहजी द्वारा किया गया है -

जेठ घड़ी न जाय, (म्हारो) जमारो कोंकर जावसी |
(मों) बिलखतड़ी वीहाय, (तूं) जोगण करग्यो जेठवा ||


जिसके बिना एक प्रहर भी नहीं बीतता उसी के बिना मेरा जीवन कैसे बीतेगा | मुझ बिलखती हुई अबला को छोड़कर हे जेठवा तू मुझे योगिन बना गया |

"जोगण करग्यो" में एक उलाहना भरी हृदय की मौन चीत्कार छिपी है | अब मेरा जीवन कैसे चलेगा | यह प्रश्न क्या दुखी हृदय में नहीं उठता ? अपनी अमूल्य निधि को खोकर "बिलखतड़ी वीहाय " कहकर इस बेबसी भरे हाहाकार को "जोगण करग्यो" कहकर धीरे से निकाल देती है |


टोळी सूं टळतांह हिरणां मन माठा हुवै |
बालम बीछ्ड़तांह , जीवै किण विध जेठवा ||

टोली के बिछुड़े हुए हिरणों के मन भी उन्मत हो जाते है फिर प्रियतम के बिछुड़ने पर प्रियतमा किस प्रकार जीवित रह सकती है |

प्रिय वस्तु का नाश संसार से विरक्ति का उत्पादन करता है | उस वस्तु बिना जीवन के सब सुख फीखे लगते है | विशेषतः हिन्दू नारी के लिए पति से बढ़कर जीवन में कोई भी प्रिय वस्तु नहीं , और जब पति की मृत्यु हो जाति है तो नारी भी "जीवै किण विध जेठवा" कहने के अलावा और कह ही क्या सकती है ? जब हिरन जैसे पशु भी विरह की घड़ी आते देख उन्मत हो जाते है फिर कोमल भावनाओं वाली नारी पति बिना किस प्रकार जीवित रह सकती है ?


जेठा थारै लार ,(म्हे) धोला वस्तर पैरिया |
(ली) माला चनणरी हाथ, जपती फिरूं रे जेठवा ||


हे जेठवा तेरे पीछे (मृत्यु के बाद) मैंने श्वेत वस्त्र धारण कर लिए है और चन्दन की माला हाथ में लेकर मैं जप करती फिरती हूँ |

पति के मरने पर रंग बिरंगे और श्रंगार की अपेक्षा हिन्दू नारी को "(ली) माला चनणरी हाथ,जपती फिरूं रे जेठवा " ही कहना इष्ट है | पति से त्यक्त अभागिनी उजळी के हृदय के करुण रुदन की दुखद हूक इस सोरठे में अदभुत रूप से व्यक्त है |


जग में जोड़ी दोय, चकवै नै सारस तणी |
तीजी मिळी न कोय, जोती हारी जेठवा ||

संसार में दो ही जोड़ी है - चकवे व सारस की | लेकिन हे जेठवा ! मैं खोज खोज कर हारी तो भी तीसरी जोड़ी न मिली |

उजळी को विश्वास था कि चकवे व सारस के बाद जेठवा व मेरी जोड़ी तीसरी जोड़ी है लेकिन उस जोड़ी के टूटने पर और जोड़ी कहाँ प्राप्त हो सकती है |


चकवा सारस वाण, नारी नेह तीनूं निरख |
जीणों मुसकल जाण, जोड़ो बिछड़ यां जेठवा ||

चकवे को, सारस के क्रन्दन को और नारी के नेह को, इन तीनों को देखकर यही प्रमाणित होता है कि जोड़ी के बिछुड़ने पर जीना कठिन है |

मृत्यु को प्राप्त हुए प्रेमी के लिए जीवित प्रेमी का सबसे बड़ा बल अपनी ही मृत्यु है | यहाँ तक कि साधारण दुःख की अवस्था में भी मनुष्य आत्महत्या के लिए प्रस्तुत हो जाते है | विशेषतः एक हिन्दू नारी का विधवा होना उसके जीवन का सबसे बड़ा दुखप्रद क्षण है | उस क्षण में यदि उजळी जैसी भावुक प्रेमिका जेठवा जैसे प्रेमी के लिए "जीणों मुसकल जाण" कह दे तो कोई अतिश्योक्ति नहीं अपितु यथार्थता की चरम सीमा है | जीवन की अनुभूति पर करुणा का आवरण चढ़ाकर उजळी ने अपने दुखी जीवन का कितना मर्मस्पर्शी चित्र खिंचा है |

उजळी द्वारा अपने प्रेमी जेठवा की मृत्यु उपरांत बनाये पिछोले -

पाबासर पैसेह हंसा भेला नी हुआ |
बुगलां संग बैसेह , जूण गमाई जेठवा ||


संसार रूपी मान सरोवर में रहकर जेठवा रूपी हंसों का संसर्ग प्राप्त न हुआ और बगुलों (निकृष्ट प्रेमियों) के संग रहकर अपना जीवन नष्ट कर दिया |

जेठवै के बिना उजळी का संसार शून्य है | वहां के लोग उजळी को बगुले लगते है | सत्य भी तो है कि गरीब का आश्रय कुटिया है | उसके लिए गमनस्पर्शी राजप्रशाद और रम्य आश्रम पशुओं के निवास स्थान है | उसका उनसे कोई प्रयोजन भी तो नहीं |


वै दीसै असवार घुड़लां री घूमर कियां |
अबला रो आधार, जको न दीसै जेठवो ||


घोड़ों को घुमाते हुए कई अश्व सवार दिखते है लेकिन मुझ अबला का आधार जेठवा नहीं दिखाई देता |

जिनका हृदय टूट जाता है उनके लिए संसार आबाद होते हुए भी शून्य है | यों तो घोड़ों के सवार बहुत मिलेंगे लेकिन अबला उजळी का आधार अब नहीं आने का | किसी प्रिय की मृत्यु पर हमारे हृदय में जो वैराग्यपपूर्ण निराशा आती है उसे उजळी ने ' जको न दीसै' जैसे मृदुल लेकिन तीक्षण शब्दों में प्रकट किया है |


अंगूठे री आग लोभी लगवाड़े गयो |
सूनी सारी रात, जंप न पड़ी रे जेठवा ||


हे लोभी तूं अंगूठे की आग लगाकर चला गया | मैं रात भर रोई ,और हे जेठवा ! मुझे लेश मात्र भी नींद नहीं आई |

उजळी का संबोधन "लोभी" बहुत मौके का है | विशेषतः राजस्थानी तो लोभीड़े शब्द को बहुत मानते है | फिर ' लगवाड़े गयो में कितनी वेदना है | एक बेबस हृदय बिछुड़ते हुए के प्रति रोने के सिवाय और क्या कर सकता है ?


बहता जळ छोडेह, पुसली भर पियो नहीं |
नैनकड़े नाड़ेह, जीव न धापै जेठवा ||


चलते जळ को छोड़कर उससे चुल्लू भर भी पानी नहीं पिया ,अब इन छोटे-छोटे तालाबों से पिपासा नहीं बुझती |

उजळी अपने प्रियतम की महानता किस विशेषता से अभिव्यंजित करती है - जेठवा बहता हुआ पवित्र जल था और संसार के अन्य जन छोटे गड्ढे है - उजळी की इच्छा थी कि जेठवा रूपी बहते जल को प्राप्त करूँ,लेकिन बहने वाला जल जब बह गया तो अब गंदे जलाशयों का पानी किस भांति पी सकती थी | पाठक देखेंगे कि इस सोरठे में वाही भाव है जो सती सावित्री द्वारा नारद व उसके पिता के सत्यवान से दूसरा वर चुनों कहने पर प्रदर्शित किया गया था |


उजळी द्वारा अपने प्रेमी जेठवा के विरह में लिखे दोहे -

जळ पीधो जाडेह, पाबसर रै पावटे |
नैनकिये नाडेह, जीव न धापै जेठवा ||


मानसरोवर के कगारों पर रहकर निर्मल जल पिया था तो हे जेठवा अब छोटे छोटे जलाशयों के जल से तृप्ति नहीं होती |

उपर्युक्त दोहे का समानार्थी यह भी है | "पीधो" में बीते हुए सुखों की एक छाया है और "न धापै" में वर्तमान की करुणा उत्पादक अवस्था का चित्रण है | एक दोहे में भूतकाल की रंगरेलियां एवं वर्तमान की चीत्कारों का कैसा अपूर्व मिश्रण है ?


ईण्डा अनल तणाह, वन मालै मूकी गयो |
उर अर पांख विनाह, पाकै किण विध जेठवा ||

पक्षी अपने अंडे वन के किसी घोसले में छोड़कर चला गया है | ह्रदय और आँखों की गर्मी बिना वे अंडे किस प्रकार पाक सकते है ?

जेठवा प्रेम का अंकुर बोकर चला गया, वे अंकुर वांछित खाद्य व पानी बिना किस प्रकार फूल सकते है ? 'वन मालै मूकी गयो' में छिपी तड़फ पाठकों के हृदय को बेध डालती है |


जंजर जड़िया जाय, आधे जाये उर महें |
कूंची कौण कराँह, जड़िया जाते जेठवै ||

हृदय के अन्दर आगे जाकर जो जंजीरे कास दी गई है उनके जेठवा जाते समय ताले भी लगा गया अत: और किससे चाबी ला सकती हूँ ?

यह है उजळी के हृदय का हृदयविदारक हाहाकार ! सहृदय पाठक इसे पढ़कर उजळी के हृदय की थाह पा सकते है और साथ ही यह भी ज्ञात कर सकते है कि राजस्थानी लोक साहित्य भी कितना संपन्न है | संसार के श्रेष्ठ साहित्यों में ही एसा वर्णन प्राप्त हो सकता है अन्य जगह नहीं |


ताला सजड़ जड़ेह, कूंची ले कीनै गयो |
खुलसी तो आयेह (कै) जड़िया रहसी जेठवा ||

मजबूत ताले जड़कर उसकी चाबी लेकर तू कहाँ गया ? हे जेठवा ! यह ताले यदि खुलेंगे तो तेरे आने पर ही, नहीं तो यों ही बंद रहेंगे |

'कीनै गयो' में भावुक राजस्थानी हृदय की कितनी जिज्ञासापूर्ण तड़फ है | जानते हुए भी पूछ उठती है 'किधर गया' | 'कै जड़िया रहसी जेठवा' में दुखी हृदय का कितना दयनीय निश्चय है |


आवै और अनेक, जाँ पर मन जावै नहीं |
दीसै तों बिन जागां सूनी जेठवा ||

अन्य कई आते है लेकिन उन पर मन नहीं जाता | हे जेठवा ! तुझे न देखकर तेरी जगह शून्य लगती है |

राजस्थानी में एक कहावत है ' भाई री भीड़ भुआ सूं नी भागै" अर्थात भाई की कमी भुआ (फूफी) से पूरी नहीं होती | यही हल है जेठवे के चले जाने पर उजळी का | यों तो संसार में आवागमन का तंत्र बना रहेगा लेकिन उससे क्या ? जेठवे के सहृदय उजळी को कोई नहीं मिल सकेगा | प्रिय वास्तु बीते हुए क्षण की भांति जब हाथ से निकल जाती है तो पुनः प्राप्त नहीं होती | उजळी का हृदय भी कह उठता है - "दीसै तों बिन जागां सूनी जेठवा" | हृदय की शुन्यता का इस सोरठे में कितना यथार्थ शाब्दिक प्रतिबिम्ब प्रकट किया गया है |

समाप्त