बुधवार, 6 जुलाई 2011

सीख लें 7 अंकों का यह जादू..! जीवनभर पाएंगे भरपूर सुख

व्यावहारिक जीवन में बुद्धिमान होने के बावजूद भी इंसान पशुवत व्यवहार करते देखा जाता है, किंतु पशुओं के स्वाभाविक खान-पान, दिनचर्या या जीवनशैली में बदलाव नहीं होता। यही कारण है कि बुद्धि को इंसान और पशु के बीच सबसे बड़ा फर्क भी माना जाता है। दरअसल, इस बात से यह भी साफ है कि बुद्धि का उपयोग ही अच्छे-बुरे कर्मों द्वारा इंसान के सुख-दु:ख नियत करता है।

बुद्धि ईश्वर की वह देन है, जो हर इंसान को प्राप्त होती है। किंतु धर्मशास्त्रों के मुताबिक इस बुद्धि का पोषण ज्ञान के साथ अनुभव और व्यवहार द्वारा भी होता है। ज्ञान, पुण्य कर्म और विचार बुद्धि को धार देते हैं। वहीं ज्ञान का अभाव, बुरे या पाप कर्मो से बुद्धि का नाश होता है।

हिन्दू धर्मशास्त्र महाभारत में सुखी जीवन के लिये ही बुद्धि के सही उपयोग से सुख की मंजिल तय करने के लिये ऐसा अंक गणित भी बताया गया है, जिसे सीखकर हर इंसान सांसारिक जीवन के संघर्ष में सफलता पा सकता है।

लिखा गया है कि -

एकया द्वे विनिनिश्चित्य त्रींश्चतुर्भिवशे कुरु।

पञ्च जित्वा विदित्वा षट् सप्त हित्वा सुखो भव।।

इस श्लोक में जीवन में कर्म, व्यवहार और नीति में बुद्धि के उपयोग द्वारा सुख बंटोरने के लिये 1 से लेकर 7 अलग-अलग सूत्रों को उजागर किया गया है। सरल शब्दों में जानते हैं यह अंक गणित -

एक यानी बुद्धि से दो यानी कर्तव्य और अकर्तव्य का निर्णय कर चार यानी साम, दाम, दण्ड, भेद द्वारा तीन यानी दुश्मन, दोस्त और तटस्थ को काबू में करें।

इनके साथ-साथ पांच यानी पांच इन्द्रियों के संयम द्वारा छ: यानी छ: नीतियों सन्धि- मेलजोल या मित्रता, विग्रह - संधि विच्छेद या मित्रता के रिश्ते न रखना, यान - सही मौके पर वार, आसन - विपरीत हालात में शांत रहना, द्वैधीभाव - ऊपर से मित्रता अंदर से शत्रुता का भाव और समाश्रय - सक्षम व सबल की पनाह लेना, समझें और जानें।

साथ ही सात यानी स्त्री, जूआ, मृगया यानी शिकार, नशा, कटु वचन, कठोर दण्ड और गलत तरीके से धन कमाने के बुरे गुण और कर्म को छोडऩा कठिन और विरोधी स्थितियों में किसी भी इंसान के लिये सुख का कारण बन जाते हैं।

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