बुधवार, 6 जुलाई 2011

इसलिए बस मेरे शहर चली आई


उस स्टेशन पर तुम बदहवास सी दौड़ रही थी
गाड़ी तो आई नहीं थी ,पर तुम घबरा रही थी
कुछ इसे ही पलो मे टकराई थी तुम मुझ से
फिर सिलसिला शुरू हुआ मुलाकातों का
ना तुम थी मेरे शहर की, ना मै था तुम्हारे शहर का
मै अपना हक़ किसी और को दे चूका था
और तुम पर हक़ किसी और का था
ना जाने क्यों फिर भी ये दूरियां सिमटने लगी
मै तुमको समझ गया तुम मुझे समझने लगी
एक दूजे की आदत हो गए थे हम
और फिर ना जाने क्यों ये नजदीकियां चुभने लगी
नम आँखों से तुम मुस्कुराती हुई मुड गई थी
तुम ये ना समझना की मैने साथ छोड़ दिया था तुम्हारा
मै बस कुछ कदम पीछे हट गया था
...................................................
आज अरसे बाद तुम फिर मुझे मेरे शहर में क्यों दिख गई
मै बस लिपटना चाहता था एक बार तुमसे
तभी तुम्हारे होंठो ने बुदबुदाया , तुमको मुझ से कुछ काम था
एक बार झूठ ही सही कह देती ,की रह नहीं पाई बिन मेरे
इसलिए बस मेरे शहर चली आई

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