मंगलवार, 19 जुलाई 2011

मंगल पाण्डे 1857 की क्रान्ति का प्रथम शहीद

                                               मंगल पाण्डे 1857 की क्रान्ति का प्रथम शहीद
कहा जाता है कि पूरे देश में एक ही दिन 31 मई 1857 को क्रान्ति आरम्भ करने का निश्चय किया गया था, पर 29 मार्च 1857 को बैरकपुर छावनी के सिपाही मंगल पाण्डे (19जुलाई 1827-8 अप्रैल 1857) की विद्रोह से उठी ज्वाला वक्त का इन्तजार नहीं कर सकी और प्रथमस्वाधीनता संग्राम का आगाज हो गया। मंगल पाण्डे को 1857 की क्रान्ति का पहला शहीद सिपाही माना जाता है। उत्तर प्रदेश राज्य के बलिया जिले के नगवा गांव में पैदा हुए इस भारतीय वीर के नाम युग-युगांतर तक आजादी की क्रांति का इतिहास देशभक्ति और हिम्मत की प्रेरणा देता रहेगा।
उनतीस मार्च 1857, दिन रविवार-उस दिन जनरल जान हियर्से अपने बंगले में आराम कर रहा था कि एक लेफ्टिनेंट बद्हवास सा दौड़ता हुआ आया और बोला कि देसी लाइन में दंगा हो गया है। खून से रंगे अपने घायल लेफ्टिनेंट की हालत देखकर जनरल जान हियर्से अपने दोनों बेटों को लेकर 34वीं देसी पैदल सेना की रेजीमेंट के परेड ग्राउण्ड की ओर दौड़ा। उधर धोती-जैकेट पहने 34वीं देसी पैदल सेना का जवान मंगलपाण्डे नंगे पांव ही एक भरी बन्दूक लेकर क्वाटर गार्ड के सामने बड़े ताव मे चहलकदमी कर रहा था और रह-रह कर अपने साथियों को ललकार रहा था-अरे! अब कब निकलोगे तुम लोग अभी तक तैयार क्यों नहीं हो रहे हो?ये अंग्रेज हमारा धर्म भ्रष्ट कर देंगे। आओ, सब मेरेपीछे आओ। हम इन्हें अभी खत्म कर देते हैं। लेकिन अफसोस किसी ने उसका साथ नहीं दिया, पर मंगल पाण्डे ने हार नहीं मानी और अकेले ही अंग्रेजी हुकूमत को ललकारता रहा। तभी अंग्रेज सार्जेंट मेजर जेम्स थार्नटन ह्यूसन ने मंगल पाण्डे को गिरफ्तार करने काआदेश दिया। यह सुन मंगल पाण्डे का खून खौल उठा और उसकी बन्दूक गरज़ने लगी। सार्जेंट मेजर ह्यूसन वहीं लुढ़क गया। अपने साथी की यह स्थिति देख घोडे़ पर सवार लेफ्टिनेंट एडजुटेंट बेम्पडे हेनरी वॉग मंगल पाण्डे की तरफ बढ़ता है, पर इससे पहले कि वह उसेकाबू कर पाता, मंगल पाण्डे ने उस पर गोली चला दी। दुर्भाग्य से गोली घोड़े को लगी और वॉग नीचे गिरते हुये फुर्ती से उठ खड़ा हुआ।
अब दोनों आमने-सामने थे। इस बीच मंगल पाण्डे ने अपनी तलवार निकाल ली और पलक झपकते ही वॉग के सीने और कन्धे को चीरते हुये निकल गई। तब तक जनरल जान हियर्से घोड़े पर सवार परेड ग्राउण्ड में पहुंचा औरयह दृश्य देखकर भौंचक्का रह गया। जनरल हियर्से ने जमादार ईश्वरी प्रसाद को हुक्म दिया कि मंगल पाण्डेको तुरन्त गिरफ्तार कर लो पर उसने ऐसा करने से मना कर दिया। तब जनरल हियर्से ने शेख पल्टू को मंगल पाण्डे को गिरफ्तार करने का हुक्म दिया। शेख पल्टू ने मंगल पाण्डे को पीछे से पकड़ लिया। स्थिति भयावह हो चली थी। मंगल पाण्डे ने गिरफ्तार होने से बेहतर मौत को गले लगाना उचित समझा और बन्दूक की नाल अपने सीने पर रख पैर के अंगूठे से फायर कर दिया।
लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था, सो मंगल पाण्डे सिर्फ घायल होकर ही रह गया। तुरन्त अंग्रेजी सेना ने उसे चारों तरफ से घेर कर बन्दी बना लिया और मंगल पाण्डे पर कोर्ट मार्शल का आदेश हुआ। अंग्रेजी हुकूमत ने 6 अप्रैल को फैसला सुनाया कि मंगल पाण्डे को 18 अप्रैल को फांसी पर चढ़ा दिया जाये। पर बाद में यह तारीख 8 अप्रैल कर दी गयी, ताकि विद्रोह की आगअन्य रेजिमेण्टो में भी न फैल जाये। मंगल पाण्डे के प्रति लोगों में इतना सम्मान पैदा हो गया था कि बैरकपुर का कोई जल्लाद फांसी देने को तैयार नहीं हुआ। नतीजन कलकत्ता से चार जल्लाद बुलाकर मंगल पाण्डे को 8 अप्रैल, 1857 को फांसी पर चढ़ा दिया गया। मंगल पाण्डे को फांसी पर चढ़ाकर अंग्रेजी हुकूमत ने जिस विद्रोह की चिंगारी को खत्म करना चाहा, वह तो फैल ही चुकी थी और देखते ही देखते इसने पूरे देश को अपने आगोश में ले लिया। ओर इस तरह मंगल पाण्डे आजादी का प्रथम शहीद कहलाया।....

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