मानव जीवन को सुर-दुर्लभ कहा गया है, यानी देवताओं को भी कठिनाई से हांसिल होने वाली स्थिति। जिस जीवन को पाने के लिय देवता भी तरसते हों, अगर उसे बगैर तैयारी के, बिना किसी योजना और गंभीर सोच-विचार के वैसे ही बिता दिया जाए तो यह हमारी समझदारी नहीं होगी।
दुनियादारी से जुड़े सारे काम, व्यापार-व्यवसाय और शादी-ब्याह तक को सफल बनाने या सही अंजाम तक पहुंचाने के लिये प्लानिंग की जरूरत पड़ती है, तो फिर जिंदगी को बगैर किसी प्लानिंग के कैसे बीतने दिया जा सकता है। मगर अधिकांश लोगों के साथ हो यही रहा है। जहां जीवन और उसके प्रबंधन की बात आए तो सबसे पहले पूर्णावतार श्री कृष्ण का नाम याद आता है।
श्रीकृष्ण पूर्ण कलाओं के अवतार हुए हैं। सौलहों कलाएं जिनकी विकसित हों, ऐसे अवतार थे श्रीकृष्ण। श्रीकृष्ण ने स्वयं तो सफल और सार्थक जीवन जीया ही साथ ही अपने करीबी दूसरे लोगों को भी जीवन को सार्थक बनाने, संवारने, निखारने में सहयोग किया। जीवन पूरी तरह से खिल व महक सके इसके सारे सूत्र श्रीकृष्ण ने दिये।
संतान की परवरिश कैसे हो इस प्लानिंग की कमी रह जाने के कारण धृतराष्ट्र-गांधारी के 100 कौरव पुत्रों का भविष्य अंधकार भरे दुखांत में बदल गया। वहीं दूसरी तरफ कृष्ण की बुआ देवी कुंती ने पांचों पाण्डु पुत्रों को प्रारंभ से ही ऐसे संस्कारों में ढाला कि बड़े होकर वे एक से बढ़कर एक सफलताओं और उपलब्धियों को प्राप्त करते चले गए।
देवी कुंती द्वारा दिये गए श्रेष्ठ संस्कारों के कारण पाण्डवों के जीवन की शुरुआत तो सुधर ही चुकी थी, लेकिन जब से पाण्डवों को श्रीकृष्ण का साथ और मार्गदर्शन मिला उनके जीवन की दिशा और दशा दोनों बदल गए। श्री कृष्ण द्वारा बताएऔर समझाए गए जीवनप्रबंधन के सूत्रों के कारण ही जूए में हारे हुए दर-दर भटकने वाले निराश पाण्डव फिर से अपना खोया हुआ आत्मविश्वास और अधिकार प्राप्त कर पाते हैं।
महाभारत के युद्ध का सर्वश्रेष्ठ घोषित यौद्धा अर्जुन श्रीकृष्ण के मार्गदर्शन मे ही इस योग्यता और मुकाम को हांसिल कर पाया था।
आइए जानते हैं उन सूत्रों को जो श्री कृष्ण ने बनाए और बताए हैं। इन सूत्रों को अपनाकर हम भी अर्जुन की तरह से अपने जीवन को सार्थक ही नहीं बल्कि कामयाबियों के सर्वोच्च शिखरों तक पहुंचा सकते हैं....
जीवन निखार के 6 अद्भुत सूत्र:
1. समर्पण- पहला और सबसे अहम् सूत्र जो जिंदगी को बनाता, संवावता और निखारता है, वह है अपने काम के प्रति पूरा का पूरा समर्पण। समर्पण ऐसा कि जिसमे फिर कोई भी शंका और संदेह की गुंजाइश न रह जाए।
2. अविचलन- काम के परिणाम या नतीजे को लेकर भी किसी प्रकार की बैचेनी या उतावलापन न हो। किसी भी प्रकार का विचलन समस्या ही पैदा करेगा, इससे आपकी एकाग्रता तो टूटेगी ही साथ में गति भी धीमी पड़ जाएगी।
3. संघर्ष- जिंदगी में कठिनाइयों, मुसीबतों, दु:खों या कड़वाहटों का होना सामान्य बात है। इस हकीकत को हर कोई जानता है। लेकिन बहुत गहराई में छुपी हुई सच्चाई यह है कि जीवन में दुखों के रूप में आने वाले संघर्ष ही जीवन का सौन्दर्य हैं। आप दुनिया के किसी भी सुन्दर और सफल जीवन को देख लें और उसमें से यदि संघर्षों और दुखों को निकाल दिया जाए तो उसका सौन्दर्य और सुगंध समाप्त हो जाएगा।
4. केन्द्र- श्रीकृष्ण ने पाण्डवों के जीवन को संवारने और सफल बनाने में ही क्यों सहयोग किया। क्या इसलिये कि पाण्डव इनके रिश्तेदार थे? रिश्तेदार तो कंस भी कम नहीं था, लेकिन सगे मामा को खुद अपने ही हाथों मार डाला।
पाण्डवों का साथ देने के पीछे कारण रिश्तेदारी नहीं बल्कि कुछ ओर ही था। कृष्ण के मन में ओरों से अधिक जगह बना सके, क्योंकि पाण्डव धर्म, सत्य और नीति के मार्ग पर हर सुख-दु:ख में डटे रहे। उन्होने केन्द्र में श्रीकृष्ण और धर्म को अंत तक बनाए रखा, यही उनकी जीत का कारण बना।
5. भावुकता- भावनाएं जीवन में रहें तो कोई हर्ज नहीं लेकिन संतुलन और सीमा सदैव बनी रहना चाहिये। भावनाओं में बहकर कर्तव्य से विमुख हो जाना या कमजोर पड़ जाना भावनाओं की नहीं बल्कि भावनाओं के असंतुलन की गड़बड़ का परिणाम है। यही हुआ था अर्जुन के साथ, जिन भावनाओं को हृदय की उदारता या महानता मानकर अर्जुन धर्म युद्ध से विमुख हो रहा था वह भावनाओं का असंतुलन ही था। गीता के माध्यम से श्रीकृष्ण ने अर्जुन के जीवन में संतुलन लाया।
6. परिणाम की चिंता- अच्छाई, सच्चाई या भलाई का रास्ता आमतौर पर कठिन हुआ ही करता है। इसलिये ऐसे कामों में इंसान परिणाम को लेकर अक्सर आशंकित और चिंतित रहने लगता है। इस चिंता और बैचेनी का बुरा असर यह होता है कि व्यक्ति का ध्यान अपने कर्तव्य से भटकने लगता है। साथ ही इंसान की कार्यक्षमता और योग्यता भी प्रभावित होकर घटने लगती है। इसलिये कर्म करें, परिणाम की चिंता परमात्मा पर छोड़ दी जाए।
दुनियादारी से जुड़े सारे काम, व्यापार-व्यवसाय और शादी-ब्याह तक को सफल बनाने या सही अंजाम तक पहुंचाने के लिये प्लानिंग की जरूरत पड़ती है, तो फिर जिंदगी को बगैर किसी प्लानिंग के कैसे बीतने दिया जा सकता है। मगर अधिकांश लोगों के साथ हो यही रहा है। जहां जीवन और उसके प्रबंधन की बात आए तो सबसे पहले पूर्णावतार श्री कृष्ण का नाम याद आता है।
श्रीकृष्ण पूर्ण कलाओं के अवतार हुए हैं। सौलहों कलाएं जिनकी विकसित हों, ऐसे अवतार थे श्रीकृष्ण। श्रीकृष्ण ने स्वयं तो सफल और सार्थक जीवन जीया ही साथ ही अपने करीबी दूसरे लोगों को भी जीवन को सार्थक बनाने, संवारने, निखारने में सहयोग किया। जीवन पूरी तरह से खिल व महक सके इसके सारे सूत्र श्रीकृष्ण ने दिये।
संतान की परवरिश कैसे हो इस प्लानिंग की कमी रह जाने के कारण धृतराष्ट्र-गांधारी के 100 कौरव पुत्रों का भविष्य अंधकार भरे दुखांत में बदल गया। वहीं दूसरी तरफ कृष्ण की बुआ देवी कुंती ने पांचों पाण्डु पुत्रों को प्रारंभ से ही ऐसे संस्कारों में ढाला कि बड़े होकर वे एक से बढ़कर एक सफलताओं और उपलब्धियों को प्राप्त करते चले गए।
देवी कुंती द्वारा दिये गए श्रेष्ठ संस्कारों के कारण पाण्डवों के जीवन की शुरुआत तो सुधर ही चुकी थी, लेकिन जब से पाण्डवों को श्रीकृष्ण का साथ और मार्गदर्शन मिला उनके जीवन की दिशा और दशा दोनों बदल गए। श्री कृष्ण द्वारा बताएऔर समझाए गए जीवनप्रबंधन के सूत्रों के कारण ही जूए में हारे हुए दर-दर भटकने वाले निराश पाण्डव फिर से अपना खोया हुआ आत्मविश्वास और अधिकार प्राप्त कर पाते हैं।
महाभारत के युद्ध का सर्वश्रेष्ठ घोषित यौद्धा अर्जुन श्रीकृष्ण के मार्गदर्शन मे ही इस योग्यता और मुकाम को हांसिल कर पाया था।
आइए जानते हैं उन सूत्रों को जो श्री कृष्ण ने बनाए और बताए हैं। इन सूत्रों को अपनाकर हम भी अर्जुन की तरह से अपने जीवन को सार्थक ही नहीं बल्कि कामयाबियों के सर्वोच्च शिखरों तक पहुंचा सकते हैं....
जीवन निखार के 6 अद्भुत सूत्र:
1. समर्पण- पहला और सबसे अहम् सूत्र जो जिंदगी को बनाता, संवावता और निखारता है, वह है अपने काम के प्रति पूरा का पूरा समर्पण। समर्पण ऐसा कि जिसमे फिर कोई भी शंका और संदेह की गुंजाइश न रह जाए।
2. अविचलन- काम के परिणाम या नतीजे को लेकर भी किसी प्रकार की बैचेनी या उतावलापन न हो। किसी भी प्रकार का विचलन समस्या ही पैदा करेगा, इससे आपकी एकाग्रता तो टूटेगी ही साथ में गति भी धीमी पड़ जाएगी।
3. संघर्ष- जिंदगी में कठिनाइयों, मुसीबतों, दु:खों या कड़वाहटों का होना सामान्य बात है। इस हकीकत को हर कोई जानता है। लेकिन बहुत गहराई में छुपी हुई सच्चाई यह है कि जीवन में दुखों के रूप में आने वाले संघर्ष ही जीवन का सौन्दर्य हैं। आप दुनिया के किसी भी सुन्दर और सफल जीवन को देख लें और उसमें से यदि संघर्षों और दुखों को निकाल दिया जाए तो उसका सौन्दर्य और सुगंध समाप्त हो जाएगा।
4. केन्द्र- श्रीकृष्ण ने पाण्डवों के जीवन को संवारने और सफल बनाने में ही क्यों सहयोग किया। क्या इसलिये कि पाण्डव इनके रिश्तेदार थे? रिश्तेदार तो कंस भी कम नहीं था, लेकिन सगे मामा को खुद अपने ही हाथों मार डाला।
पाण्डवों का साथ देने के पीछे कारण रिश्तेदारी नहीं बल्कि कुछ ओर ही था। कृष्ण के मन में ओरों से अधिक जगह बना सके, क्योंकि पाण्डव धर्म, सत्य और नीति के मार्ग पर हर सुख-दु:ख में डटे रहे। उन्होने केन्द्र में श्रीकृष्ण और धर्म को अंत तक बनाए रखा, यही उनकी जीत का कारण बना।
5. भावुकता- भावनाएं जीवन में रहें तो कोई हर्ज नहीं लेकिन संतुलन और सीमा सदैव बनी रहना चाहिये। भावनाओं में बहकर कर्तव्य से विमुख हो जाना या कमजोर पड़ जाना भावनाओं की नहीं बल्कि भावनाओं के असंतुलन की गड़बड़ का परिणाम है। यही हुआ था अर्जुन के साथ, जिन भावनाओं को हृदय की उदारता या महानता मानकर अर्जुन धर्म युद्ध से विमुख हो रहा था वह भावनाओं का असंतुलन ही था। गीता के माध्यम से श्रीकृष्ण ने अर्जुन के जीवन में संतुलन लाया।
6. परिणाम की चिंता- अच्छाई, सच्चाई या भलाई का रास्ता आमतौर पर कठिन हुआ ही करता है। इसलिये ऐसे कामों में इंसान परिणाम को लेकर अक्सर आशंकित और चिंतित रहने लगता है। इस चिंता और बैचेनी का बुरा असर यह होता है कि व्यक्ति का ध्यान अपने कर्तव्य से भटकने लगता है। साथ ही इंसान की कार्यक्षमता और योग्यता भी प्रभावित होकर घटने लगती है। इसलिये कर्म करें, परिणाम की चिंता परमात्मा पर छोड़ दी जाए।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें