शनिवार, 16 फ़रवरी 2013

स्वर्णिम हिंद का स्वर्णिम स्वप्न'

आप माने या न माने लेकिन हमारे देश में मरने के बाद भी तीन दशकों से एक सिपाही सरहदों की रक्षा कर रहा है।
इस सिपाही को अब लोग कैप्टन बाबा हरभजन सिंह के नाम से पुकारते हैं।
4 अक्टूबर 1968 में सिक्किम के साथ लगती चीन की सीमा के साथ नाथुला पास में गहरी खाई में गिरने से मृत्यु हो गई थी।
लोगों का ऐसा मानना है कि तब से लेकर आज तक यह सिपाही की आत्मा सरहदों की रक्षा कर रही है।
इस बात पर हमारे देश के सैनिकों को पूरा विश्ववास तो है ही लेकिन चीन के सैनिक भी इस बात को मानते हैं
क्योंकि उन्होंने कैप्टन बाबा हरभजन सिंह को मरने के बाद घोड़े पर सवार होकर सरहदों की गश्त करते हुए देखा है।
कैप्टन हरभजन सिंह का जन्म 3 अगस्त 1941 को पंजाब के कपूरथला जिला के ब्रोंदल गांव में हुआ था।
उन्होंने वर्ष 1966 में 23वीं पंजाब बटालियन ज्वाइन की थी।
वह सिक्किम जब 4 अक्टूबर 1968 में टेकुला सरहद से घोड़े पर सवार होकर अपने मुख्यालय डेंगचुकला जा रहे थे
तो वह एक तेज बहते हुए झरने में जा गिरे और उनकी मौत हो गई।
उन्हें पांच दिन तक जीवित मानकर लापता घोषित कर दिया गया था।
पांचवें दिन उनके साथी सिपाही प्रीतम सिंह को सपने में आकर मृत्यू की जानकारी दी और बताया की उनका शव कहां पड़ा है।
उन्होंने प्रीतम प्रीतम सिंह से यह भी इच्छा जाहिर की कि उनकी समाधि भी वहीं बनाई जाए।
पहले प्रीतम सिंह कि बात का किसी ने विश्वास नहीं कि
लेकिन जब उनका शव उसी स्थल पर मिला जहां उन्होंने बताया था तो सेना के अधिकारियों को उनकी बात पर विश्वास हो गया।
और सेना के अधिकारियों ने उनकी छोक्या छो नामक स्थान पर उनकी समाधि बना डाली।
उनके आज भी रात को ही जवान वर्दी को प्रेस कर देते हैं उनके जूतों को पॉलिश कर दिया जाता है
क्योंकि ऐसी धारणा है कि उन्हें सुबह सरहद पर डयूटी पर जाना होता है।
उनके कमरे में रोजाना सफाई की जाती है
सरकार ने उन्हें मृत न घोषित करते हुए उनकी सेवाओं को जारी रखा
उनके परिवार के सदस्यों को पेंशन नहीं मिलती थी उनका वेतन उनके घर बाकायदा फौज के जवान देकर जाते थे।
मरने के बाद बाबा कैप्टन बाबा को सेना के अधिकारियों ने सिपाही से पदोन्नत कर कैप्टन बना दिया।
वह किसी न किसी तरह सीमा के पार होने वाली गतिविधियों की जानकारी आज भी सेना के अधिकारियों को दे देते हैं।
अब काफी समय के बाद सेना ने उनका वेतन बंद कर दिया है।
हालांकि उनकी समाधि पर चढऩे वाला चढ़ावा उनके घर आज भी भिजवा दिया जाता है।
हर वर्ष उन्हें 15 सितंबर से 15 नंवबर तक वार्षिक छुट्टी पर जाना होता है।
इस दौरान फौज के दो सिपाही उनका सामान लेकर घर जाते हैं
और उनकी छुट्टी खतम होने पर उनका सामान वापस लेकर आते है।
इस दौरान युनिट के सभी फौजियों की छुट्टियां रद्द कर दी जाती हैं।
सिक्कम के लोग भगवान कंचनजुंगा के बाद दूसरा भगवान इन्हें मानते
हैं।

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