गलतियौ से जुदा तु भी नही मे भी नही।. दोनो ईनसान हे खुदा तु भी नही मे भी नही।. तु मुझे और मैं तुझे लम्हा देते हे मगर।.अपने अंऩदर झाकता तु भी नही मे भी नही। मसलेहतौ ने कर दिया दोनो मे पैदा ईकथलाप।वरना फितरत का बुरा तु भी नही मे भी नही।मुखतलिप सिमटो मे दोनो का सफर जारी रहा। ईक लम्है के लिये रुका तु भी नही मे भी नही। चाहते दोनो बहुत एक दुसरे को हे। मगर ये हकीकत हे कि मानता तु भी नही मे भी नही॥-रामदेवसिह (बालेसर)
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 19 दिसम्बर 2015 को लिंक की जाएगी ....
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